________________
हीन हो तो स्त्री दोष और पुत्र की मृत्यु होती है तथा दासत्व की प्राप्ति होती है। अगर वह संपूर्ण अवयववाला हो तो घर में रहनेवालों को मान, प्रतिष्ठा और सुख की प्राप्ति होगी। द्वार, कोने और स्तंभ आदि कैसे रखे जायें
मुख्य द्वार के समान ही दूसरे द्वार रखें अर्थात् प्रत्येक के शीर्षभाग समसूत्र में रहने चाहिए अथवा मुख्य द्वार के मध्य में आये उस प्रकार संकीर्ण बनायें। अगर मुख्य द्वार के सन्मुख न रखकर एक तरफ द्वार बनायें तो अपनी इच्छानुसार कर सकते हैं।
अंदर के मुख्य द्वार से बाहर का देहली - द्वार (दरवाज़ा) ऊँचा तथा संकीर्णन बनाना चाहिए। दोनों के उत्तरंग (Equal) समसूत्र में रहने चाहिए। ऊँचाया संकरा हो तो यह शुभ नहीं है।
भारवट तथा पीढ़ आदि द्वार के सामने नहीं चाहिए। यदि सामने हो तो घर का स्वामी दरिद्रता तथा व्याधि से पीडित होता है। .. कोने के सामने कोने, गोख के सामने गोख (गवाक्ष) तथा खीलों के सामने खीले एवं स्तंभ के बराबर सामने सारे स्तम्भ - ये सब "वेध" नहीं आये उस प्रकार बनायें।
गवाक्ष (गोख) के ऊपर खीला, द्वार के ऊपर स्तंभ, स्तंभ के ऊपर द्वार, द्वार के ऊपर दो द्वार, समान खंड और विषमस्तंभ - ये सब महा अशुभकारक हैं।
प्रासाद (राजमहल अथवा हवेली भवन) मठ (आश्रम) और देवमंदिर ये सब बिना स्तंभ के नहीं बनाने चाहिए। कोने के बीच में अवश्य स्तंभ रखना चाहिए।
स्तंभ का नाप "परिमाणमंजरी" में बताया गया है वह इस प्रकार है : घर के उदय के नौ भाग करें। इसमें एक भाग की कुंभी, छः भागके स्तंभ, आधे भाग का भरणा, आधे भाग काशर तथा एकभाग का पट्ट (पाटडा) बनायें।
कुंभी के माथे के ऊपर शिखर वाले, गोल, आठ कोनेवाले, भद्र के आकारवाले (चढ़ते - उतरते खरोच - कोनेवाले) मूर्तियों वाले एवं पल्लवयुक्त स्तंभ, सामान्य घरों में नहीं रखने चाहिए। परंतु हवेली, राजमहल या देवमंदिर में ऐसी रचना करने में दोष नहीं है।
खंड के मध्य भाग में खीले, आले या गवाक्ष (गोख) नहीं बनाने चाहिए, किंतु अंतरवटी एवं मंच रखने चाहिए। खंड में पट्ट (पाटड़)समसंख्या में रखे जाने चाहिए।
जिस घर के मध्य में अथवा आंगन में त्रिकोण या पंचकोण भूमि हो उस घर में रहनेवालों को कभी भी सुख, समृद्धि की प्राप्ति नहीं हो सकती।
पश्चिम दिशा के द्वारवाले मुख्य घर में दो द्वार और एक कमरा हो ऐसे घर में निवास नहीं करना चाहिए। ऐसे घर में रहनेवाले दुःखी रहते है।
जैन वास्तुसार
53