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करके उनकी पूजा करनी चाहिए। इसके ऊपर चौबीस कोष्ठकों में शासन देवताओं को स्थापित करके उनकी पूजा करनी चाहिए और उसके ऊपर बत्तीस कोष्ठकों में “इन्द्रों को अनुक्रम से स्थापित करके उनकी पूजा करनी चाहिए ।
प्रत्येक देव को मंत्राक्षर पूर्वक गंध, पुष्प, अक्षत, दीपक, धूप, फल, नैवेध आदि अर्पित करके उनकी पूजा करें। फिर उसी प्रकार दस दिक्पाल एवं चौबीस यक्षों की भी पूजा की जानी चाहिए | जिनबिंब के ऊपर अभिषेक पूर्वक अष्टप्रकारी पूजा की जानी चाहिए।
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वास्तु या खात आदि मुहूर्त करनेवाला पुरुष कैसा होना चाहिए यह "बृहत्संहिता" में बताया गया है - खात आदि वास्तु करनेवाला पुरुष अगर दाहिने हाथ से हीन हो तो द्रव्य का नाश होता है और स्त्री दोष होता है। बांये हाथ से अगर हीन हो तो धन-धान्य की हानी होती है । मस्तक का कोई भी अवयव अर्थात् नाक, कान, आँख और मुख आदि से हीन हो तो सर्व गुणों का नाश होता है । दायें या बायें पाँव से
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“दिगंबराचार्य कृत प्रतिष्ठा पाठों में आठ व्यंतर और आठ वाणव्यंतर के बत्तीस इन्द्रों को छोड़कर शेष बत्तीस इन्द्रों की पूजा करने का अधिकार कहा गया है।