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चार वर्णों के घरों का मान
ब्राह्मण के घर का विस्तार बत्तीस हाथ है। उसमें से अनुक्रम से चार चार हाथ घटाने से सोलह हाथ रहे तब तक घटाते रहना चाहिए। तब क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और अंत्यज जाति के घरों का मान होता है। उदा:- ब्राह्मण जाति के घर का विस्तार 32 हाथ क्षत्रिय जाति के घर का विस्तार 28 हाथ, वैश्य जाति के घर का विस्तार 24 हाथ, शूद्र जाति के घर का विस्तार 20 हाथ और अंत्यज जाति के घर का विस्तार 16 हाथ है। इन जातियों के घरों के विस्तार में क्रमशः दसवाँ, आठवाँ, छठा और चौथा भाग जोड़ने से लंबाई कामान होता है।
* चार वर्गों के घरों का मानयंत्र* ब्राह्मण क्षत्रिय | वैश्य | शूद्र अंत्यज विस्तार 62 | 28 | 24 | 20 . 16 | | लंबाई 35/4+8.75/31-12] 28 | 25 | 20 |
मुख्य घर तथा अलिंद की समझ
घरों की जो लंबाई और चौड़ाई बताई गई है इसे मुख्य घर का मान समझें। बाकी द्वार के बाहरी भाग में जो बरामदा इत्यादि हो उसे अलिंद समझें। दीवार के अंदर के भाग में कमरे, शाला या बाजु की लघुशाला इत्यादि हों इन सबको मुख्य घर समझें। अर्थात् मुख्य शाला के मध्य में छोटे कमरे इत्यादि हों उन सबको मुख्य (मूल) घर समझें। अलिंद (अहाते) का प्रमाण ___ऊंचाई में एक सौ सात अंगुल, गर्भ में पिचासी (85) अंगुल और (शाला) की लंबाई के अनुसार लंबाई यह प्रत्येक अलिंद का मान समझना चाहिए।
शाला और अलिंद का मान "राजवल्लभ" में इस प्रकार है - घर का विस्तार जिस प्रकार हो उसमें 70 हाथ जोड़कर 14 से विभाजित करने से जो मिले उतने हाथ काशाला का विस्तार करना चाहिए।
शाला का विस्तार जितने हाथ का हो उसमें 35 जोड़कर 14 से विभाजित करें। जो लब्धि मिले उतने हाथ का अलिंद का विस्तार करना चाहिए। “समरांगणमें भी कहा है कि - शाला के विस्तार से अलिंद का विस्तार आधा करना चाहिए और प्रत्येक घर में उसी प्रकार समझना चाहिए।गज (हाथ) का स्वरुप - इस प्रकार है:
जैन वास्तुसार
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