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ग्रहों की संज्ञा
सूर्य गृहस्थ, चंद्रमा गृहिणी (स्त्री) शुक्र, धन और गुरु सुख है। इनमें से जो ग्रह बलवान होता है वह अपने भाव का अधिक फल देता है इसमें संदेह नहीं है । जैसे कि सूर्य बलवान हो तो घर के स्वामी को और चन्द्र बलवान हो तो स्त्री को शुभ फल देता है।. शुक्र बलवान हो तो धन और गुरु बलवान हो तो सुख देता है ।
राजा आदि के पाँच पाँच ग्रहों का मान
राजा, सेनाधिपति, मंत्री, युवराज, अनुज (छोटा भाई - सामंत) रानी, नैमित्तिक (ज्योतिषी), वैद्य और पुरोहित इन सबके उत्तम, मध्यम, विशेष मध्यम, जघन्य और अति जघन्य इस प्रकार पाँच पाँच जाति के घर बनते हैं। इसमें उत्तम, जाति के घर का विस्तार क्रमशः 108, 64, 60, 80, 40, 30, 40, 40 और 40 हाथ का है। इनमें प्रत्येक में से अनुक्रम से 8, 6, 4, 6, 4, 6, 4, 4 और 4 हाथ बार बार घटाने से मध्यम, विमध्यम, जघन्य और अति जघन्य घर का विस्तार होता है। यह विस्तार सभी मुख्य घर का समझना चाहिए। इस विस्तार में विस्तार का चौथा, छठा, आठवाँ, तीसरा, तीसरा, आठवाँ, छठा, छठा और छठा भाग अनुक्रम से जोड़ने से सब घरों की लंबाई का मान होता है ।
* राजा आदि के पाँच पाँच घरों का मानयंत्र
उत्तम
संख्या मानहाथ राजा सेनापति मंत्री
विस्तार 108 64
30
GT 135 74-16 67-12 106-16 53-8 33-18 46-16 46-16 46-16
विस्तार 100 58
36
लंबाई 12567-16
विमध्यम विस्तार 92 115 60-16 58-12 90-16 42-16 20-6
1
मध्यम
2
3
कनिष्ठ विस्तार
4
अति
कनिष्ठ
84
जन-जन का
52
46
60
40
56
52
63 98-16
48
युवराज अनुज राणी ज्योतिषी वैद्य पुरोहित
80
40
40
54
74
लंबाई 105 53-16 विस्तार 76
56
लंबाई 95 46-16 49-12 74-16
44
68
62
82-16
27
36
48
32
28
24
24
27
18
12
6
40
32 6-18
36
42
32
37-8
28
24
40
28
42
32
37-8
28
37-8 13-12 32-16 32-16 32-16
24
36
28
42
32
37-8
28
24
28