________________ परालोक में पारुल - मनीषियों की दृष्टि-सृष्टि में “पारुल की उदात्त आत्मा अभी अपने ऊर्ध्वगमन की ओर गति कर रही है। ‘मुक्ति' तो नहीं है। वह जन्म लेगी, केवल कुछ ही जन्म और पहुँचेगी ‘समकित' तक। उसकी पुनर्जन्म प्राप्त आत्मा को आप पहचान लेंगे।" ____- आत्मदृष्टा विदुषी सुश्री विमलाताई ठकार, माउन्ट आबु (Voyage within with Vimalaji - pp 15) “यद्यपि पारुल से मैं एक ही बार मिला था जब कि उसने बेंगलोर एअरपोर्ट पर मेरा इंटरव्यू लिया था, वह मुझे एक आशु-प्रज्ञ, भली और सच्चाईभरी कन्या दीखाई दी। इतनी छोटी आयु में उसकी मृत्यु एक खिल रही कली के समान है जो कि एक अद्भुत पुष्प-रूप में विकसित होने जा रही थी।... उसकी आत्मा की शांति के लिए प्रभु से मेरी प्रार्थना।" -- पंडित रविशंकर (Profiles of Parul) नई दिल्ली “पारुल अनेक सिद्धियों का एक ऐसा व्यक्तित्व था कि जो भी विषय उसने उठाया उस में वह चरम पर पहुँची / अपनी बौद्धिक सम्पदा होते हए भी वह एक कर्मठ कर्मयोगिनी रही। परंत इन सभी से ऊपर वह मुझे दीखाई दी एक अति संवेदनशील और प्रशांत आत्मा के रूप में, जिसकी आँखें सदा सुदूर आकाश के उस पार झाँकती रहीं और सचराचर सजीव सृष्टि के प्रति सदा अपनी करुणा बहाती रही....।'' / - श्री कान्तिलाल परीख (Profiles of Parul) मुंबई “जाने माने जैन स्कॉलर, संगीतकार, प्रतापकुमार टोलिया की पुत्री पारुल टोलिया अगर आज जीवित होती तो पत्रकारिता के क्षेत्र में एक विशेष स्थान बना चुकी होती / परन्तु 28 अगस्त 1988 को एक दुर्घटना में उनका आकस्मिक निधन हो गया। बहमुखी प्रतिभा की धनी पारुल ने न जाने कितने ही छोटे-बड़े पुरस्कार अपनी छोटी-सी उम्र में बटोर लिए थे। वे शहर के तत्कालीन लोकप्रिय साप्ताहिक 'सिटी-टॅब' की नियमित स्तंभकार थी तथा शहर के सबसे पहले हिन्दी दैनिक 'कारण' में सहायक सम्पादक के रूप में कार्य कर चुकी थीं। उनकी पुण्यतिथि 28 अगस्त को है। इस पुण्य अवसर के आलोक में उनकी कुछ छोटी मोटी कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं।" - श्रीकान्त पाराशर, सम्पादक, दैनिक दक्षिण भारत', बेंगलोर 21.08.2005