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७. जिन खोजा तिन पाईया, गहरे पानी पैठ ...
प्रेम का सागर
धीर, गंभीर, अथाह
उमड़ रहा है दिल में
प्यास बुझानेवाले
इसे चख के विदा होते
न समझ पाते इस खारेपन के भीतर
छुपी मिठास को
अपनी मिठास को
खारेपन का नकाब नाममात्र को
पहनाया है ...
थाह पाने का यत्न
तुम्हें गहरा सुख देगा
एक बार उस में डूबे
कि लौट न पाओगे ।
ऊपर से नहीं, अंदर से, बाहर से नहीं, भीतर से पाई जाती है गरिमा और गंभीरता सागर की, प्रेम के सागर की । बाहर से, ऊपर से वह उमड़ता दिखता है, खारा लगता है, परंतु उसकी मधुरता, उसकी सुख-शाता दायिनी शांति उसके भीतर छिपी है। कभी डूबकर के तो देखें गहरे पानी की गहराई में ।
स्वर्ग
स्वर्ग आसानी से मिलता है कभी?
और जानेवाला भी लौटा है कभी ?
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पारुल - प्रसून