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ओ मैया! तेरे कुंवर की करनी क्या बात? “एक दिन सभी मिल के हम खेल खेलते थे, सुख-दुःख के घाव, दाव संग झोलते थे। निकला अचानक साँप एक महाकाय, देखते ही सभी हम मागते चले जाये,
बोलते हुए- 'बाप रे बाप !'
पर तेरे लाडले ने दौड़ एकड़ा उसे, रस्सी समान फेंक छोड़ रक्खा उसे, पर कॉपा न उसका हाथ।
ओ मैया! तेरे कुंवर की करनी क्या बात ?" साँप बने हुए उस देवताने फिर थककर क्या किया ?
(भय-वाद्य : Horror Effects) (गीत पंक्ति) “रूप पिशाच का लेकर देवता वीर को पीठ बिठाई दिये।
नन्हा-सा बहादुर बाल कुमार, उस देव को मुट्ठी लगाई दिये।" साँप-पिशाच दैत्य और दूसरे प्रसंग में पागल हाथी- सभी को अपने बाल-पराक्रम से कुमार वर्धमान वश करते रहे... (सूरमंडल) बाल-किशोर-कुमारावस्था बीत चुकी.... युवा आई.. भीतर से वे अलिप्न हैं परन्तु 'भोगावली' कर्म अभी अवशेष है, माता-पिता के प्रति भक्ति-कर्त्तव्य अभी शेष है, यशोदा का स्नेह-ऋण अभी बाकी है (सूरमंडल) और राजकुमार वर्धमान महावीर यशोदा का पाणिग्रहण करते हैं, उस से विवाह करते हैं। यद्यपि दूसरी मान्यतानुसार वे अविवाहित कुमार ही रहते हैं। ... इस गृहस्थाश्रम में, वैभवपूर्ण गृहस्थाश्रम में भी वे जीते हैं अपने उस जलकमल वत् जीवनादर्श के अनुसार