________________
(M)
(F)
(F) -
(F)
(M)
(F) -
(M)
“जल में, कीच में जन्म लेकर भी जैसे जल से कमल अलिप्त (प्रतिध्वनि घोष) रहता है, वैसे ही संसार के बीच रहते हुए भी आत्मार्था को संसार वासना से अलिप्त रहना है।" (सूरमंडल)
इसी आदर्श के अनुसार भोग को रोग की भाँति भुगतकर, बीत रहे उनके गृहस्थाश्रम के दौरान उनके घर पुत्रीरत्न 'प्रियदर्शना' का खेलना और माता-पिता का स्वर्ग सिधारना इन सभी अनुकूल-प्रतिकूल घटनाओं में भी महावीर का आत्मचिन्तन निरंतर चलता रहता है ( प्रतिध्वनि युक्त गीतपंक्ति) “मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ ? कोडहम् ? कोडहम् ? “मैं कौन हूँ ? आया कहाँ से ? क्या स्वरूप है मेरा सही ? मैं कौन हूँ ?"
तीव्रता पकड़ते हुए इस आत्मचिन्तन के प्रत्युत्तर में उन्हें लंबे अर्से से पुकारती हुई वह आवाज (भीतर से) सुनाई देती है, वह आवाज, वह कि जिस में एक मांग है, एक बुलावा है, एक निमंत्रण है -
(प्रतिध्वनि घोष ) " ने एगं जाणई, से सव्वं बाणई।" जो एक को, आत्मा को जान लेता है, वह सब को, सारे जगत को जान लेता है ... । आ, और अपने आप को पहचान, अपने आप को पा ... । (सूरमंडल, दिव्यवाद्यवृंद)
इसे तड़प उठे हैं। इनकी छटापटाहट जाग उट्ठी है। इस आवाज का वे जवाब देना चाहते हैं, अपने को खोजना और सदा के लिए पाना चाहते हैं -
ना, वैशाली के राजमहल में अपनी इस आत्मा को पाया नहीं जा सकता.... ! (सूरमंडल)
और इसके लिए एक ही मार्ग था - "सर्वसंग परित्याग".... भीतरी भावदशा से भरे इस वीरोचित सर्वत्र परित्याग के अवसर की ताक में वे तरसते रहे..
( प्रतिध्वनि - गीत) (Echoing Song)
“ अपूर्व अवसर... अपूर्व अवसर ऐसा आयेगा कभी ?
कब होंगे हम बाह्यांतर निग्रंथ रे ?
सर्व सम्बन्ध का बन्धन तीक्ष्ण छेदकर,
कब विचरेंगे महत्पुरुष के पंथ रे ? अपूर्व अवसर ।"