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ma Proor. Dr. 10.6.18 लालाराम (मस्ती-मज़ाक में गाते हुए प्रवेश कर के):
"सर पर कफन बांध कफ़नवा हो, बहादुर निकले लड़ने को...."
का करत हो बाबूजी ? शहीदा-दी पूजा कर दी कि नाही ? योगेन : पूजा ? कैसी पूजा ? समाधि पर यह फूल चढ़ाने से पूजा हो जाती है क्या ? लालाराम : हाँ, हाँ योगेन्दरजी ! हमारे मिनस्टर सा'ब तो माणते हैं कि शहीदों की समाधि पर फूल चढ़ाणे से देश की भारी सेवा होती है ! हमारे साब जितणी बार दिल्ली जाते हैं, उतणी बार राजघाट जाकर गांधी बापू की समाधि की पूजा करते हैं, और बापूजी को याद तो दिनमें कितणी दफा करते हैं तम जाणदा? योगेन : नहीं तो। लालाराम : अरे माला ही फेरते हैं बापू के नामदी । बापू....बापू....बापू..... बापू....! कल की ही बात । एक स्कूल में लेक्चर दिया तो पचास दफ़ा याद किया, पचास दफ़ा ! योगेन : पचास दफा याद किया ? लालाराम : हाँ, हाँ पचास दफ़ा । योगेन : सिर्फ जबान से ही, या दिल और कार्य से भी ? लालाराम : है.... ? क्या कहणदा बाबू सा'ब ? कित्ते बड़े देशभगत हैं हमारे सा'ब ! वे तो बापूदा ही काम करते हैं न ? और काम भी कित्ता ! जब भी देखो तब काम ही काम । वाहे गुरुजी दी किरपा.... बाबूजी, गुरुजी दी किरपा । अरे, शाम हों दी ? अब मैं जाऊंगा । नहीं तो मिनस्टर साब कहणगे कि इत्ती देर काहे लगा दी? योगेन (व्यथा-व्यंग प्रतिभाव सह) : हूँ.... लोगों ने समाधि पर फूल रख दिया और कबर पर दिया । घर में फोटो लटका दिया और बाज़ार में पुस्तक । मुँह से नाम ले लिया बापू का और काम करते रहे अपना ! मगर दिल से तो बापू को कहते रहे होंगे कि -
"बूढ़े ! सोते रहना समाधि में जुग जुग तक । उठना मत ।
फिकर मत करना हम तुम्हें कभी भूलेंगे नहीं । तुम्हारे नाम पर सब काम कर लेंगे, सब.....!"
_2nd Proor. UL. 10.8.18 लालाराम : का बोलत हो बाबूजी, का? योगेन : चपरासीजी ! जाइये देर होगी आपको, फिर कभी मिलना.... । (जाता है, लालाराम : जरुर मिलांगा, जरुर मिलांगा योगेन्दरजी, सत सिरी अकाल । योगेन : कहाँ उन शहीदों का बलिदान और कहाँ इन शासकों की सेवा ! कहाँ इन भारतवासियों की पूजा.....! मि. खन्ना : क्या रे, मि. आंटिया (युवकों का प्रवेश)! फिर उस लड़की का क्या हुआ कल? मि. आंटिया (पारसी बोली में): अरे शं ठवावें हे ? एज की आज सायकलमा पंक्चर करियो के गई बिचारी रोटी रोट्टी। खन्ना : शाबाश मगर तूने तो एक उसीकी साइकिल को पंक्चर किया होगा मि. आंटिया । इस बन्दे ने तो पच्चीस पंक्चर किये पच्चीस । आंटिया : एकसलंत मि. खन्ना एकसलंत । तू बी क्या कम है ? देवेन्दर (प्रवेश करते हुए): गुड इवनिंग मि. खन्ना। दोनों : गुड इवनिंग देवेन्दर, गुड इवनिंग । देवेन्दर : अच्छा, यह बताओ कल स्टेडियम पर कैसी रही? खन्ना : बहुत खूब - बहुत खूब.... । क्या कहना ? अपने साब को शिकार बहुत मिल गये ! देवेन्दर : ह...? क्या....? आंटिया : केम न मिले ? आय लोगोंनो दरोड़ो पण कितनो? आय (बाफ पच्चीस हजार..... आवड़ो मोटो मैच आ अमरतसरमां कभी नहीं देख्यो। देवेन्दर : पच्चीस हज़ार ! My God !! खन्ना : हाँ, हाँ पच्चीस हज़ार प्रेक्षक थे और रेडियो पर कोमेन्ट्री तो देशभर के लाखों लोगों ने सुनी होगी ! और वह भी लगातार तीन रोज़ तक। देवेन्दर (कटाक्ष से): क्रिकेट का मेच हो या संगीत नाटक का फैस्टीवल । हज़ारों देखने वाले और लाखों सुनने वाले जमा हो जायेंगे इस देश में । बेशक खेल और संगीत कोई बुरी चीज़ नहीं, लेकिन यह बताओ कि साथ मिलकर देश के निर्माण का कोई काम करना हो तो कितने लोग मिलेंगे इस आजाद भारत में ? खन्ना : तो क्या खेल और नाटक से देश का निर्माण नहीं होता?
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