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श्रीमद् राजचंद्र - एक समालोचना जैनों को आर्द्रा के बाद उत्तर प्रदेश, बिहार आदिराज्यों में आम देखने एवं खाने हेतु जाना चाहिए। ___ वस्त्रों की पसंदगी के विषय में देखे जानेवाले छिछोरेपन (उद्भटता) के विषय में श्रीमद्जी द्वारा प्रदर्शित विचार उनकी व्यवहारकुशलता का सूचक है। वे सुरुचिपूर्ण पहनावे में मानते हैं, परंतु छिछोरेपन से किसीकी योग्यता में वृद्धि हो सकती है और सादगी के कारण योग्यता में कमी होती है ऐसा वे नहीं मानते हैं। देखें उन्हीं के शब्द : ‘पहनावे में छिछोरापन नहीं फिर भी सुघड़तापूर्ण सादगी ही अच्छी है। छिछोरेपन के कारण पाँचसौ की तनख्वाह से कोई पाँचसौ एक न देगा और योग्य सादगी के कारण कोई पाँचसौ से घटा कर चारसौ निन्यानबे नहीं देगा।'(७०६)
योग्य विचार किये बिना धर्म के नाम पर धांधली मचानेवाले, वर्तमान समय में तो श्वसुरगृह की तरह विदेशों में बसनेवाली संतति के जैन पूर्वजों नें चालीसपचास वर्ष पहले वीरचंद गांधी के धर्मपरिषद के निमित्त से होनेवाले अमेरिका के प्रवास के समय भारी विरोध उठाया तब उन्हीं व्यापारियों के बीच एक व्यापारी के रूप में रहने पर भी विदेशगमन के निषेध के विषय में श्रीमदजी ने जो विचार व्यक्त किया है, वह विचार प्रसिद्ध जैनाचार्य आत्मारामजी के विचार की ही भाँति कितना विवेकपूर्ण एवं निर्भय है! जैन समाज की प्रकृति का यह द्योतक होने के कारण उन्हीं के शब्दों में पढ़ने योग्य है। वे लिखते हैं:
“धर्म में लौकिक बड़प्पन, मानमहत्त्व की इच्छा - यह सब धर्म के द्रोहरूप
"अनार्य देश में जाने का या सूत्र आदि भेजने का धर्म के नाम पर निषेध करने वाले, ढोल बजा कर निषेध करनेवाले, अपने मान-महत्त्व-बड़प्पन का सवाल आने पर उसी धर्म को ठोकर मारकर, उसी धर्म पर पाँव रख कर, उसी निषेध का निषेध करें, यह धर्मद्रोह ही है। धर्म का महत्त्व तो बहानारूप और स्वार्थिक मान आदि का सवाल मुख्य - यह धर्मद्रोह ही है।"
“वीरचंद गांधी के विलायत आदि भेजने के विषय में ऐसा हुआ है।" 'धर्म ज मुख्य एवो रंग त्यारे अहोभाग्य' (७०६) 'धर्म ही मुख्य रंग जब हो तब अहोभाग्य!'