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वास्तव में 'अपने' को पाने, कौन खुदी को खोता है ? अपने हित को रोते यहां सब, , कौन दूसरों का होता है ? .
.. क्या यह भी .... ....?
कौन कमी राजी ही यहां पर, हस्ती मिटाने होता है ? खुद-परस्ती मिटाने किसने, मीतर का हल जोता है ? ... मिटकर ही फूलने फलने का, बीज यहां कौन बोता है ? अहंकार-संग्रह का यहां पर, व्यर्थ बोझ वह ढोता है,
क्या यह भी .........?
वाणी थम जाती है जहां पर मौन ही मुखर होता है, ऐसे नीरव, अशेष संग का , जहाँपर पदरव होता है,
अनंत की अनुगूंज