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क्या यह भी कोई जीवन है, सहजीवन है ?
क्या यह भी कोई जीवन है, सहजीवन है, जिसे 'बोझ' बना मन ढ़ोता है ? अस्खल, निश्छल, कलकल जल का क्या, पलपल बहता यह सोता है ? क्या यह भी ....
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या तो फिर फिर के लगता रहता एक, अहंकार का गोता है ? - जिस को नहीं घुलना आता है, उठ उठकर जो रोता है ? चलता पलपल जो 'माँग' लिए, एक सुख सुविधा का न्योता है, दम्भ, दर्प का योग बना यह, सौदा और समझौता है ?
क्या यह भी .....
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कौन यहां पर अपने भीतर. कालुष - कल्मष धोता है ? आशा, अपेक्षा, सुरक्षा छोड़ कौन, निरपेक्ष तार पिरोता है ?
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अनंत की अनुगूंज