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परिच्छेद तीन ग्राम, वन एवं पर्वत
उद्योतनसूरि ने कुवलयमालाकहा में निम्नोक्त ग्रामों का उल्लेख किया है :
उच्चस्थल (६५.१)-तक्षशिला नगरी के पश्चिम-दक्षिण दिशाभाग में उच्चस्थल नाम का ग्राम था।' यह ग्राम देवभवनों के कारण स्वर्गसदृश, विविधरत्नों से युक्त होने के कारण पाताल सदृश, गौ सम्पत्ति युक्त होने से गोष्ठगण सदृश तथा धनसम्पदा युक्त होने से धनकपुरी सदृश प्रतीत होता था (६५.१, २)। इस गाँव में सार्थवाह रहता था। उसके पुत्र धनदेव ने सोपारक से व्यापार करने के लिए दक्षिणापथ की यात्रा की थी। उच्चस्थल ग्राम की पहचान करना कठिन है। कल्पसूत्र (८, पृ० २३२) में उच्चनगर का उल्लेख है, जिसे वरणा भी कहा जाता था। उच्चनगर या वरणा की पहचान उत्तरप्रदेश के बुलन्दशहर नगर से की जाती है । सम्भव है, उच्चस्थल ग्राम से उच्चनगर का कोई सम्बन्ध रहा हो, क्योंकि दोनों उत्तरभारत में स्थित थे।
कूपपन्द्र (५०.२०)-महानगरी उज्जयिनी के पूर्वोत्तर दिशाभाग में एक योजन की दूरी पर कूपचन्द्र नाम का ग्राम था, जो धन-धान्य की समृद्धि और गवित पामरजनों के कारण महानगर सदृश प्रतीत होता था (५०.२१)। वहाँ क्षेत्रभट नाम का वृद्ध ठाकुर रहता था। उज्जयिनी के राजा अवन्तिवर्द्धन ने वह ग्राम सेवा के बदले दान में उसे दिया था। कूपचन्द्र की आधुनिक पहचान नहीं की जा सकी है । यद्यपि कूपक ठ नाम के गाँव में पार्श्वनाथ ने प्रथम आहार ग्रहण
१. तीए य णयरीए पच्छिम-दक्खिणे दिसाभाए उच्चस्थलं णाम गाम-कु० ६५.१. २. एपिग्राफिया इण्डिका, भाग १, १८९२, पृ० ३७९-ज० ला० के० में, पृ० ३५२
पर उद्धृत । ३. महणयरीए उज्जेणीए पुन्वुत्तरे दिसाभागविभाए जोयण-मेत्ते पएसे कूववंद्रं णाम
गामं-- कुव० ५०.२०. ४. दिण्णं च राइणा ओलग्गमाणस्स तं चेव कूववंद्रं गाम-५०.२६.