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________________ ३७८ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन का नाम कुवलयमाला में नहीं दिया है। विचारधारा के आधार पर प्रतीत होता है कि इसका सम्बन्ध भी योग से प्रभावित दर्शन से रहा होगा, जो सांख्य की ही एक शाखा है। त्रिदण्डियों के मत से कुछ भिन्नता होने के कारण ये अपने को योगाभ्यासी कहते रहे होंगे। पाँच यम और पाँच नियम ये दस परिव्राजक धर्म सांख्यदर्शन के साधु भो मानते तथा इनका उपदेश देते थे। राजा दृढ़वर्मन् ने इस मत के आचार्य का धर्म इसलिए स्वीकार नहीं किया क्योंकि उसे सर्वगत आत्मा होने पर योगाभ्यास विपरीत प्रतीत होता है। उपर्युक्त इन दोनों त्रिडण्डी और योगी की विचारधारा से इतना स्पष्ट होता है कि इस समय भी सांख्य दर्शन में आत्मा को सर्वगत और पुरुष को प्रकृति से मुक्त माना जाता था, जो उसके मूल सिद्धान्त रहे हैं । चरक-कुवलयमाला में चरक का उल्लेख दान आदि देने के प्रसंग में अन्य साधुओं के साथ हुआ है (१४.६) । इनकी क्या विचारधारा थी, उद्योतन ने इसकी कोई जानकारी नहीं दी। प्राचीन भारतीय साहित्य में 'चरक' के कई उल्लेख प्राप्त होते हैं। पाणिनि ने एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर ज्ञान का प्रचार करने वाले विद्यार्थियों को चरक कहा है ।२ जातकों में चरक इसी अर्थ का द्योतक है।' किन्तु जैनसूत्रों में परिव्राजक साधुओं के एक भेद को चरक कहा गया है। चरकों की अनेक क्रियाओं का वर्णन भी इन सूत्रों में मिलता है। प्रज्ञापनाटीका (मलयगिरि. २०, पृ० १२१४) में चरक परिव्राजकों का कपिलमुनि का पुत्र तथा आचारागंचूर्णी (८, पृ० २६५) में उनके भक्त सांख्य बतलाये गये हैं । अतः चरक का सम्बन्ध साख्यदर्शन की किसी शाखा से रहा होगा। यद्यपि उसके मत का स्पष्टीकरण नहीं होता । ___उद्द्योतनसूरि ने सांख्यदर्शन के प्राचार्यों में केवल कपिल का एक बार अन्य आचार्यों के साथ उल्लेख किया है (२.२९)। कपिल निरीश्वर सांख्यमत को मानने वाले थे। सांख्य-पालोचक-राजा दढ़वर्मन् के समक्ष एक आचार्य ने अपना मत इन शब्दों में प्रगट किया-'पच्चीस पुरुषों (तत्त्वों) को जान लेने पर व्यक्ति यदि ब्रह्म-हत्या भी करे तो जल में कमल को भांति वह पाप से लिप्त नहीं होता। १. अप्पा सरीर-मेत्तो णिय-कम्मे कणइ बज्जए तेणं । सर-गए कह जोओ विवरीयं वट्टए एयं ॥-२०३.३३ २. अग्रवाल, पा० का० भा०, पृ० २९७ ३. सोनक जातक, ५.२४७ ४. द्रष्टव्य, ज०-जै० आ० भा० स०, पृ० ४१६ (नोट) ५. णाऊण पंचवीसय-पुरिसं जइ कुणइ बंभ हच्चाओ। तो वि ण लिप्पइ पुरिसो जलेण जह पंकयं सलिले ।।-२०६.३५
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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