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________________ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन गोविन्द-ग्रन्थ में गोविन्द का चार बार उल्लेख हुआ है-(२.२९, १०.५, १४६.२३, २५६.३१)। गोविन्द धार्मिक-देवता के रूप में पूजित था, जिसे बलि भी दी जाती थी। सम्भवतः इसलिए उसे सरागी कहा गया है। गोविन्द विष्णु का अपर नाम है। राजस्थान में आठवीं सदी में विष्णु की उपासना काफी प्रचलित थी।' ग्रन्थ में गोविन्द विष्णु के कृष्ण अवतार के लिए प्रयुक्त नाम है। क्योंकि गोविन्द (कृष्ण) का निवास-स्थान द्वारिकापुरि बतलाया गया है (१४९.२३)। कृष्ण के साथ 'गोविन्द' विशेषण जुड़ने के सम्बन्ध में डा० भण्डारकर ने विशेष प्रकाश डाला है। कृष्ण इसलिए गोविन्द कहलाते हैं कि उन्होंने वराह के रूप में पृथ्वी को (गां) जल में पाया था (विन्दति) (महा० आदिपर्व, २१.१२) । शान्तिपर्व (३४२.७०) से भी इस कथन की पुष्टि होती है। इससे पूर्व भी ऋग्वेद में गोपालन के अर्थ में इन्द्र के विशेषण 'गोविद्' का उल्लेख हुआ है । सम्भवत: यह 'गोविद्' गोविन्द का प्रारम्भिक रूप है तथा जब कृष्ण प्रधान देव के रूप में माने जाने लगे होंगे उस समय वासुदेव-कृष्ण के लिए यह विशेषण अपना लिया गया होगा। नारायण-नारायण का ग्रन्थ में तीन बार उल्लेख हुआ है, (२६.२, ६८.१५, १४९.१४) । कुमार कुवलयचन्द्र के नगर-भ्रमण के समय नगरवधुएँ उसकी उपमा अनेक देवताओं से देती हैं। एक कहती है-'सखि, देख, देख, वक्षस्थल की विशालता के कारण यह नारायण है।' दूसरी कहती है-'सखि, यदि यह श्यामल कृष्णवर्ण वाला होता तब तो नारायण था, किन्तु इसका तो तप्तसुवर्ण की भाँति रंग है।'२ समुद्री तूफान के समय नारायण को यात्री स्मरण करते हैं।' तथा विजयापुरी के पामरजन गायों एवं उनके बछड़ों में व्यस्त तथा गोपीजन को उज्जवल कटाक्षों के अभिलाषी बचपन के नारायण (बालकृष्ण) जैसे थे। यहाँ स्पष्ट रूप से नारायण कृष्ण के लिए प्रयुक्त हुआ है। कृष्ण का श्यामरंग एवं उनकी वाल-लोलाएँ साहित्य एवं पुरातात्विक सामग्री में यत्र-तत्र उल्लिखित हैं। आठवीं सदी के उत्तरार्द्ध तक विष्णु के अवतार के रूप में कृष्ण पूर्णरूप से प्रतिष्ठित हो चके थे। सम्भवतः इसीलिए विष्ण के अनेक नाम केशव, नारायण, गोविन्द आदि कृष्ण के लिए प्रयुक्त होने लगे थे। डा० १. श० --रा० ए०, पृ० ३६८. अण्णेक्का ए भणियं-'सहि, पेच्छ पेच्छ णज्जइ वच्छत्य लाभोगेण णारायणो' त्ति । अण्णाए भणियं । 'सहि, होज्ज फुडं णारायणो त्ति जइ गवल-कज्जल-सवण्णो । एसो पुण तविय सुवण्ण-सच्छहो विहडए तेण' ॥-कुव० २६.१-२. ३. कोवि णारायणस्स थयं पढइ। -वही-६८.१७. ४. अण्णि पणि बाल-कालि णारायणु जइसय रंभिर-गो-वग्ग-तण्णय-वावडा गोवविला सिणी-धवल-वलमाण-णयण-कडक्ख-विक्खेव-विलप्माण व-वहीं,१४९.१४.१५. 5. In Haribhadra's Dhürtakhyāna Keshava and Krispa have been identified with Vişnu, showing thereby that by the middle of eighth centuary, the position of Krişna as an Avatar had become fully established. -S. RTA. P. 371.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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