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प्रमुख - धर्म
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-गृह कोटवी देवी का होना चाहिये । कोटवी दक्षिण भारत की मूलदेवी कौट्टवे थी, जिसका रूप राक्षसी का था । पीछे वह दुर्गा या उमा के रूप में पूजी जाने लगी । बाण के समय में वह दुर्भाग्य की सूचक मानी जाने लगी थी और उत्तर भारत में के लोग भी उससे खूब परिचित हो गये थे । '
बाण ने इसे नग्नदेवी के रूप में उल्लेख किया है ।" हेमचन्द्र के अनुसार बाल खोले हुए नग्न स्त्री कोटवी कही जाती थी । अतः ज्ञात होता है कि इसकी मूर्ति नग्न ही बनायी जाती होगी । अहिच्छत्रा के खिलौनों में तर्जनी दिखाती हुई एक नग्न स्त्री अंकित की गयी है । डा० अग्रवाल के अनुसार वह कोट्टवी की आकृति होनी चाहिये । अल्मोड़े जिले में एक कोटलगढ़ नामक स्थान है, जोकोवी का गढ़ कहा जाता था । कोट्टवी बाणासुर की माता थी, जिसका आधा शरीर कवच से ढका हुआ एवं प्राधा नंगा माना जाता है । इन साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि काट्टवी देवी की पूजा दक्षिण भारत से उत्तर भारत एवं हिमालय के अभ्यन्तर तक में प्रचलित थी ।
जैन सूत्रों में आर्या और कोट्टकिरिया इन दोनों देवियों को दुर्गा का रूप माना है । कुवलयमाला में भी कोट्टवई को दुर्गा ही माना गया है, जिसके अम्बा ( २३४.१९), आर्या (१०४.१७ ), चंडिका ( ६८.१७), दुर्गा ( २५७ . १ ) एवं कात्यायनी ( १३.५ ) पर नाम मिलते हैं । इन सबको मांस-बलि के द्वारा संतुष्ट किया जाता था, जो कोट्टवई के राक्षसी रूप का परिचायक है । कल्पद्रुमकोश (१२७ ) के अनुसार भी कोट्टवी अम्बिका का एक रूप था । इससे स्पष्ट है कि कोट्टवी एक लौकिक देवी थी, जिसकी दक्षिण से उत्तर भारत तक तक विभिन्न रूपों में पूजा होती थी और जिसके स्वतन्त्र मंदिर बनने लगे थे ।
वैदिक धर्म
उद्योतनसूरि का युग यद्यपि विभिन्न धार्मिक मत-मतान्तरों से युक्त था, अनेक स्वतन्त्र सम्प्रदाय विकसित हो गये थे तथापि वैदिक विचार धारा का प्रतिनिधित्व करने वाले कुछ आचार्य भी इस समय उपस्थित थे । वर्णाश्रम, अग्निहोम, क्रियाकाण्ड, पशुयज्ञ, वेदपाठ आदि धार्मिक अनुष्ठान सम्पादित होते
९. वही, पृ० १३४ ( नोट भी )
२. हर्षचरित, पू० २००
'नग्ना तु कोटवी', अभिधानचिंतामणि, ३.९८.
३.
४. हर्ष ०, पृ० १३५ (नोट)
५.
१.
ज० - जै० भा० स०, पृ० ४४९ पर उद्धृत ।
द्रष्टव्य ह० - ० इ० क०, पृ० ३५२ । इसमें महाबलिपुरं में दुर्गा के एक मंदिर को कोटिकल मंडप कहा गया है, सम्भवतः प्रारम्भ में वह कोटवई देवी का मंदिर रहा हो ।