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________________ परिच्छेद एक प्रमुख धर्म कुवलयमालाकहा के रचनाकार श्री उद्योतनसूरि जैनधर्म के श्वेताम्बर सम्प्रदाय के साधु थे। जैनधर्म एवं दर्शन के प्रकाण्ड पंडित । उन्होंने ग्रन्थ में जैनधर्म का सांगोपांग वर्णन किया है । जैनधर्म के वर्णन के प्रति ग्रन्थकार जितने उदार हैं उतने हो अपने समय की अध्यात्मचेतना एवं धार्मिक गतिविधियों के प्रति सजग भी। प्रसंगवश उद्द्योतन ने अन्य धर्मों के सम्बन्ध में विस्तृत एवं विविध सामग्री प्रस्तुत की है। विभिन्न धार्मिक आचार्यों, तपस्वियों, प्रवर्तकों, मठों, दार्शनिक मतों, देवी-देवताओं एवं तीर्थयात्रियों के सम्बन्ध में कुव० में जो विवरण उपलब्ध है, उसके अध्ययन से ८ वीं शताब्दी के धार्मिक जगत् का स्पष्ट चित्र उपस्थित हो जाता है। उद्द्योतनसूरि ने कुव० में धार्मिक विवरण किसी एक प्रसंग में नहीं दिया है। राजा दृढवर्मन् की दीक्षा के समय विभिन्न धार्मिक आचार्यों एवं उनके मतों का विस्तृत वर्णन है। शेष जानकारी छट-पुट प्रसंगों से मिलती है। सम्पूर्ण धार्मिक सामग्री को जांचने एवं वर्गीकृत करने से प्राचीन भारत के प्रायः सभी प्रमुख धर्मो, सम्प्रदायों एवं विचारधाराओं के सम्बन्ध में कुछ न कुछ प्रकाश पड़ता है। अतः ग्रन्थ के वर्णक्रम की अपेक्षा विषय के वर्गीकरण के अनुसार ही इस धार्मिक विवरण का अध्ययन प्रस्तुत करना उचित होगा। शैव धर्म __आठवीं शताब्दी में शैव धर्म पर्याप्त विकसित हो चका था। उसके स्वरूप में पौराणिक तत्त्वों का समावेश हो गया था। रुद्र एवं शिव के सम्बन्धों में घनिष्ठता थी। लिंगपूजा का सूत्रपात हो चका था। वैदिक शैव धर्म अब अनेक सम्प्रदायों में विभक्त था। कापालिक, कारुणिक, कोल, शाक्त आदि उनमें प्रमुख थे। शिव के विभिन्न रूप-महाकाल, शशिशेखर, हर, शंकर, त्रिनेत्र, अर्धनारीश्वर,
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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