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________________ राजप्रासाद स्थापत्य की दीपिका में राजहंसों का गमन दिखायी पड़ता था।' भवन-उद्यान में महेन्द्र के पूछने पर कि यह राजहंस जैसा मधुर शब्द यहां कैसे हो रहा है ? कुवलयचन्द्र उत्तर देता है कि क्या यहां भवन-उद्यान में दीपिका नहीं है ?, वापी नहीं नहीं है ?, सरोवर नहीं है ?, गहरी पुष्करिणी नहीं है ?, उनमें गृहहंस विचरण नहीं करते हैं ? जो तुम राजहंसो की संभावना करते हो। गृहहंस यहां विचरण करते हैं। उनका ही यह शब्द है (१६६.२४, २७)। वर्णन के इस क्रम से ज्ञात होता है कि महास्थान मण्डप से लेकर भवन-उद्यान तक जो दीर्घिका बहती थी उससे आगे चलकर कहीं वापी, कहीं सरोवर एवं कहीं गहरी पुष्करिणी बना ली गयी थीं। अन्य साहित्यिक एवं पुरातात्विक साक्ष्यों से कुवलयमाला का यह वर्णन प्रमाणित होता है। प्राचीन प्रासाद-शिल्प में दीपिका एक पारिभाषिक शब्द था। यह एक प्रकार की लम्बी नहर होती थी जो राजप्रासादों से एक ओर से दूसरी ओर दौड़ती हुई अन्त में गृहउद्यान को सींचती थी। बीच-बीच में जल के प्रवाह को रोक कर पुष्करिणी, क्रीड़ावापी, सरोवर आदि बना लिये जाते थे। कहीं जल को अदृश्य करके विविध प्रकार के जलयन्त्र बना दिये जाते थे। सोमदेव के यशस्तिलकचम्पू में दीपिका से पुष्करिणी, गंधोदककूप, विविध जलयन्त्र आदि बनाने का उल्लेख है ।२ लम्बी होने के कारण ही इस नहर को दीपिका कहा गया है। राजभवनों में दीपिका-निर्माण की परम्परा भारतवर्ष में प्राचीनकाल से लेकर मुगलकाल तक प्राप्त होती है। कालिदास ने रघुवंश (१६.१३) में दीपिका का वर्णन किया है। बाणभट्ट ने हर्षचरित एवं कादम्बरी में दीपिका का विस्तृत वर्णन किया है। डा. वासुदेवशरण अग्रवाल ने इस सामग्री पर विशेष प्रकाश डाला है। १० वीं शताब्दी में सोमदेव ने यशोधर के महल में दीपिका का विस्तृत वर्णन किया है (पूर्वा०प०३८)। मध्यकाल में विद्यापति ने अपनी कीर्तिलता (पृ० १३९) में कृत्रिमनदी का उल्लेख किया है, जो भवनदीर्घिका का ही एक रूप था। मुगलकालीन राजप्रासादों में भी दीर्धिका बनायी जाती थी, जिसका उर्दू नाम नहरेविहिश्त था। वर्तमान में दीर्घिका के मूगलकालीन रूप को दिल्ली के लाल किले के महल में स्थित नहर को देखकर समझा जा सकता है। दीपिका का निर्माण केवल भारतवर्ष में ही नहीं पाया जाता, प्रत्युत विदेशों में भी राजप्रासाद को वास्तुकला की यह विशेषता पायी जाती है। ईरान में खुसरू परवेज के महल में भी इस प्रकार की नहर थी। प्यूडर राजा हेनरी अष्टम के हेम्पटन कोर्ट में जिसे लांगवाटर कहा गया है वह दीपिका के ही समान है। १. राय-हंस-परिगयाओ दीसंति महत्थाण-मंडलीओ दीहियाओ व । -३१.१६ २. द्रष्टव्य, जै०-यश० सां० अ०, पृ० २५६ ३. अ०-३० अ०, पृ० २०६ एवं का० सां० अ०, पृ० ३७२
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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