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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन कुवलयमालाकार ग्रन्थ के प्रायः सभी वर्णनों के प्रति पूर्ण सचेत हैं, ईमानदार हैं। नगर-वर्णन (७.१४), युद्ध-वर्णन (१०.३), प्रकृति-चित्रण (१६.५), विवाहवर्णन (१७०-१७१) आदि के चित्र कुवलयमाला में द्रष्टव्य हैं। कथाकार ने जिसे छुपा है, भरसक उसे अधूरा नहीं रहने दिया।
भोगायतन-शिल्प :-कथा के समस्त अंगों की पुष्टि कर कथा में रस का यथेष्ट संचार इस शिल्प के द्वारा किया जाता है। आधुनिक समालोचक कथावस्तु, पात्र, कथोपकथन, वातावरण, भाषा-शैली और उद्देश्य, कथा के ये छः तत्त्व मानते हैं । कुवलयमाला में इन सवको परिपुष्ट किया गया है। पात्र यद्यपि व्यष्टिरूप नहीं है, फिर भी चित्रण में विविधता है। कथोपकथन अत्यन्त स्वाभाविक, सजीव और साभिप्राय हैं। कुतूहल और जिज्ञासा उत्पन्न करने में समर्थ हैं।
प्ररोचन-शिल्प : - 'रुचि संवर्द्धन के लिए कथाकार जिस स्थापत्य का प्रयोग करता है, वह प्ररोचन शिल्प है।' कुवलयमाला के कथाकार ने गद्य-पद्यमय शैली को अपनी कथा का माध्यम चुना है। प्राकृत कथाओं का यह एक शिल्पविशेष रहा है, जिसे बहुत लोग भ्रमवशात् चम्पू का नाम दे देते हैं। वस्तुतः बात ऐसी नहीं है। यह एक रमणीक संकीर्णकथा है। इसका प्ररोचन शिल्प कुछ इस प्रकार का है कि उसे भारतीय चम्पूकाव्यों का जनक कहा जा सकता है।
रोमांस-योजना :-'प्राकृतकथाओं के स्थापत्य में रोमांस-योजना का तात्पर्य यह है कि कथाएँ काव्य के उपकरणों के सहारे अपने स्वरूप को प्रकट करती हुई आश्चर्य का सृजन करती हैं।' कुवलयमाला में काव्य के प्रायः सभी उपकरण विद्यमान हैं। इसमें एक सुन्दरी कन्या की प्रतिष्ठा सूत्र रूप में पहले से कर दी जाती है । 'कुवलयमाला' इस नाम के प्रभाव से ही पाठक को कथाओं के बीच गुजरने में भी उत्सुकता बनी रहती है। उत्सव-वर्णन, विवाह-वर्णन, प्रहेलिका आदि का वर्णन कुवलयमाला में रोमांस-योजना को पुष्ट करते हैं। फिर भी यहाँ रोमांस का मिश्रितरूप ही हमें देखने को मिलता है।
कुतूहल-योजना :-'कुतूहल या सस्पेंस कथा का प्राण है।' कुवलयमाला में कुमार महेन्द्र की प्राप्ति से कुतूहल का प्रारम्भ हो जाता है । कुवलयचन्द्र का अश्व द्वारा अपहरण भी एक कुतूहल ही है, जो समग्र कथा का उद्घाटक है। उसके बाद मुनि के पास बैठा हुआ शेर भी कुतूहल उत्पन्न करता है । यक्षकन्या, ऐणिका सन्यासिनी आदि अवान्तर-कथाएं भी कुतूहल के साथ आती हैं और समाधान देती हुई विलीन हो जाती हैं।
वत्ति-विवेचन :-कथाओं में निबद्ध पात्र और चरित्रों के द्वारा मनुष्य की विभिन्न वत्तियों का विश्लेषण करना वृत्तिविवेचन शिल्प है। इस शिल्प द्वारा कथाओं में दर्शन-तत्त्व की योजना बड़े सुन्दर ढंग से सम्पन्न की जाती है। कुव०