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राजप्रासाद स्थापत्य
३१७ ३. बाह्य-आस्थानमण्डप में, सभी विद्याओं एवं कलाओं के जानकार .
सभासद होते थे। ४. राजा किसी गूढ विषय में सभासदों से विचार-विमर्श करता था। ५. सभासदों के साथ बाह्य-प्रास्थानमण्डप में राजा विनोदपूर्वक अपना
कुछ समय व्यतीत करता था। ६. बाह्य-प्रास्थानमंडप अनेक राजपुत्रों और सामन्तों से भरा
रहता था।' ७. युवराज-अभिषेक का कार्य बाह्य प्रास्थानमण्डप में सम्पन्न होता था। ८. नगर के प्रमुख व्यक्ति राजा के पास अपनी शिकायत पहुंचाने उसकी
प्राज्ञा लेकर बाह्य-आस्थान-मण्डप तक जा सकते थे। उद्योतन का बाह्य-आस्थानमण्डप सम्बन्धी उपर्युक्त वर्णन महाकवि बाण के वर्णन को प्रमाणित करता है। आगे चलकर इसी स्थापत्य का अनुकरण किया गया है। अपभ्रंश ग्रन्थ भविसयत्तकहा में (६.२,३) बाह्य-आस्थानमण्डप को 'सव्वावसर', अपराजितपृच्छा (७८.३१) में 'सर्वावसर', पृथ्वीचन्द्रचरित (पृ० १३२) में 'सर्वोसर' तथा कीर्तिलता और वर्णरत्नाकर में 'सर्वासर' कहा गया है। इससे स्पष्ट है कि बाह्य-प्रास्थानमण्डप तक मध्यकाल में भी आम जनता पहुँच सकती थी। मुगलकाल में बाह्य-प्रास्थानमण्डप को दरबार-आम कहा जाने लगा था ।
धवलगह-कुव० में धवलगृह का इन प्रसंगों में उल्लेख हुआ है: -तोसल राजकुमार अपनी नगरी में घूमता हुआ महानगर-श्रेष्ठि के धवलगह के समीप पहुंचा। वहां से जाते हुए उसने जालगवाक्ष में बैठी हुई वणिकपुत्री को देखा। रात्रि में अभिसार के योग्य वेषधारण कर तोसल धवलगह के समीप पहुंच कर रस्सी के सहारे प्रासाद पर चढ़ गया (७३.२४) । चिन्तामणिपल्ली के सेनापति का धवलगृह मेरुसदृश ऊँचा, हिमालय सदृश धवल तथा पृथ्वी के समान विस्तृत था (१३८.१९)। कुवलयमाला के विवाह के समय धवलगृह सजाया गया (१७०.२२)। कुवलयचन्द्र की विदाई के असर पर धवलगृह के मध्यभाग में विविध धान्यों से चौक पूरा गया। धवलगृह के ऊपर अन्तःपुर से एक सिद्ध वैरीगुप्त की पत्नी को उठा लाया (२५२.२)।
उक्त वर्णन से ज्ञात होता है कि धवलगृह प्रासाद-वर्णन का अभिन्न अंग था । धवलगृह में अन्तःपुर वनाया जाता था । महाकवि बाण के वर्णन के अनुसार
१. परमेसरत्थाणि-मंडलि जइसिया, रायसुयाहिट्ठिया ,णेय-सामंत व्व । -२७.३२. २. द्रष्टव्य, अ०-ह० अ०, पृ० २०५. ३. संपत्तो एक्कस्स महाणयर-सेट्ठिणो धवलहर-समीवं। -७३.८. ४. कयं धवलहरस्स बहुमज्झदेसभाए सव्व-धण्ण-विरुढंकुरा चाउरंतयं-१८१.२५.