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________________ राजप्रासाद स्थापत्य या बाजार की मुख्य सड़क स्कन्धावार का ही अंग माना जाती थी । दिल्ली के लालकिले के सामने का जो लम्बा-चौड़ा मैदान है वह मध्यकाल में उर्दूबाजार अर्थात् छावनी का बाजार कहलाता था, जो विपणिमार्ग का ही मध्यकालीन रूप था।' सिंहद्वार राज्यप्रासाद स्थापत्य में राज्यद्वार का महत्त्वपूर्ण स्थान था। राजभवन का प्रारम्भ राज्यद्वार के बाद ही होता था। राज्यद्वार के बाहर जो स्थान पड़ा रहता था, वहाँ तक आम जनता बेरोक-टोक जा सकती थी तथा राजा से मिलने की प्रतीक्षा में मुख्य द्वार के बाहर अपने तम्बू लगाकर पड़ाव डाल लेती थी। महाकवि बाण ने दस प्रकार के ऐसे शिविरों का उल्लेख किया है, जो राजा से मिलने के उत्सुक थे ।२ उद्द्योतनसूरि ने कुवलयमाला में इस बात की पुष्टि की है। कोसाम्बी नगरी का महामन्त्री वासव बाह्य उद्यान में मुनिराज के आगमन की सूचना देने राजा पुरन्दरदत्त के भवन में जाता है। राज्यप्रासाद के सिंहद्वार पर पहुँचते ही वासव ने अपने-अपने कार्यों को पूरा कराने के इच्छुक हजारों व्यक्तियों को वहाँ संचरण करते हुए देखा। वह द्वार के समीप अश्व से उत्तर गया । और पैदल ही राजा के समीप चला गया (३२.३२) । यहाँ सिंहद्वार का अर्थ राजभवन की ड्योढ़ी से है। यहाँ पर बाह्य प्रतिद्वारों का पहरा रहता था। यह राजभवन की सुरक्षा के अनुरूप था। सम्भवतः द्वार पर कड़ा पहरा होने के कारण ही इसे सिंहद्वार कहा जाने लगा होगा। बाद में तो मुख्य द्वारों पर दोनों ओर सिंह की मूत्तियाँ भी बनायी जाने लगी थीं। बाह्य-आस्थान-मण्डप प्राचीन भारतीय राजकुल-स्थापत्य में प्रास्थान मण्डप उस स्थान को कहते थे, जहाँ राजा सिंहासन पर बैठकर अन्य राजाओं एवं मंत्रियों के साथ विचारविमर्श करता था। इसके दो भाग होते थे-बाह्य-आस्थान-मण्डप और अभ्यन्तर आस्थानमण्डप । कुव० में इन दोनों का वर्णन प्राप्त होता है। उद्द्योतनसूरि ने बाह्य-आस्थानमण्डप का उल्लेख इन प्रसंगों में किया है। राजा दढ़वर्मन् महानरेन्द्रों की मंडली से घिरा हुआ बाह्य-आस्थानमण्डप में बैठा हुआ था । जैसे ही उसे अन्तःपुर-महत्तरिका ने आकर कोई सूचना दी उसने राजाओं की सभा को विसर्जित कर दिया एवं वह वासभवन में चला गया १. अ०-ह० अ०, पृ० २१७. २. अ०-ह० अ०, पृ० २०३. आरूढो तुरंगमे, पत्थिओ य राय-पुरंदरदत्तस्स भवणं । -३२.३१. ४. कज्जत्थिणा-जण-सय-सहस्सेहिं अण्णिज्जमाणो ताव गओ जाव राइणो सीह दुबारं।-वही-३२.३२
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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