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________________ परिच्छेद चार नगर स्थापत्य उद्योतन ने कुवलयमालाकहा में विभिन्न नगरों का वर्णन अत्यन्त व्यवस्थित रूप में किया है । इससे प्राचीन भारतीय नगर सन्निवेश के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है । नगर की सुरक्षा के लिए चारों ओर एक गहरी खायी खोदी जाती थी, जिसे परिखा कहा जाता था । परिखा के बाद नगर के चारों ओर मजबूत और ऊँची दीवाल बनायी जाती थी जिसे प्राकार कहते थे । प्राकार पर ऊँची ऊँची बुर्जे बनायीं जातीं थीं, जिनमें बैठकर आते हुए शत्रु को दूर से ही देखा जा सके । इन्हें अट्टालिका कहते थे । प्राकार में विभिन्न दिशाओं में मुख्य और सामान्य द्वार बनाये जाते थे । मुख्यद्वार को गोपुर कहा जाता था । संभवतया गोपुर से प्रवेश करते ही रक्षामुख बनाये जाते थे, जिसे सैनिक चोकी या चेकपोस्ट कहा जा सकता है । रक्षामुख के उपरान्त नगर की आन्तरिक संरचना का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है । इस सम्बन्ध में कुवलयमाला में उपलब्ध विनीता (७.२२), कोशाम्बी ( ३१.२९, ३०), कांची ( ४५.१६ ), समवसरण ( ९६.३२), जयश्री (१०४.९), माकन्दी ( ११७.२ ), उज्जयिनी तथा विजया ( १४९.२० ) आदि नगरियों के वर्णनों में उल्लिखित नगर- स्थापत्य द्रष्टव्य है । परिखा - उद्योतन ने उज्जयिनी नगरी का वर्णन करते हुए कहा है कि भवनों की कतार राज्यपथों से विभक्त थी, राज्यपथों में विपणिमार्ग शोभित थे, विपणिमार्ग की शोभा गोपुरद्वार थे, गोपुरद्वार के आगे प्राकार शिखर बने थे, प्राकारशिखर की शोभा परिखावन्ध से थी । परिखा में निर्मल जल की तरंगें शोभित थीं, जिनपर सुगन्धित पुष्प शोभित थे ( १२४.२९, ३१ ) । इस वर्णन से परिखा, प्राकार, गोपुर, राज्यपथ, विपणिमार्ग, भवनपंक्ति का क्रम निश्चित होता है, जो प्राचीन नगरसन्निवेश के अनुकूल है । परिखा के इस उल्लेख के प्रतिरिक्त उद्योतन ने अन्यत्र परिखा को तप्त स्वर्ण से निर्मित (उत्तत्त- कणय- मइया फरिहा) (४५. १६) तथा पृथ्वीसदृश गंभीर
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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