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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन कि वह सुन्दर है अथवा नहीं।' कलाचार्य भी उसकी इस समीक्षक योग्यता से प्रभावित है । चित्रकला के अन्य ग्रन्थों में इस शब्द का उल्लेख नहीं है।
कुव० में उल्लिखित चित्रकला के उपर्युक्त विवरण से ज्ञात होता है कि आठवीं सदी तक चित्रकला पर्याप्त विकसित हो चुकी थी। चित्रकला के स्वरूप एवं विषयवस्तु में भी विविधता थी। यही कारण कि है कि महाकवि बाण को उज्जयिनी की चित्रकला में विश्व के विविध रूप दिखायी दिये-(दशितविश्वरूपा चित्रभित्ति)। तथा उद्द्योतन ने समस्त पृथ्वी की वस्तुओं को चित्रपट में प्रतिबिम्बित दिखाया ही है।
१. जाणामि चित्तयम्मं णरिदं दलृ पि जाणामि, १८५.१२ ।
-दंसेहि मे चित्तयम्म जेण जाणामि सुंदरं ण व त्ति, १८५.१४ ।