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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन कुवलयमालाकहा के वर्णन के आधार पर पटचित्रकला के प्रमुख तीन प्रकार प्राप्त होते हैं-व्यक्तिगत चित्र, धार्मिक चित्र एवं कथात्मक पटचित्र । इनके सम्बन्ध में उद्योतन ने निम्नोक्त विशेष जानकारी दी है।
व्यक्तिगत पटचित्र-नायक-नायिका में चित्रदर्शन का अभिप्राय (motif) साहित्य व लोक में प्राचीन समय से प्रचलित है। इस कारण व्यक्तिगत पटचित्रों का निर्माण अधिक मात्रा में हुआ। उद्योतनसूरि ने भी कामगजेन्द्र की कथा में इसी अभिप्राय का प्रयोग किया है। उज्जयिनी की राजकुमारी एवं कामगजेन्द्र के चित्र इतने आकर्षक बनाये गये थे कि दोनों परस्पर मोहित हो गये । व्यक्तिगत पटचित्रों की यह प्रमुख विशेषता रही है कि उनमें विद्धरूप आरोपित किया जाता रहा है। उद्योतन ने ऐसे चित्र को शक्ति के समान हृदय को विदारण करने में समर्थ माना है (२३३.२१) । व्यक्तिगत चित्र स्पष्ट रेखा, सुविभक्त रंग-संयोजन, मनोहर लिखावट, मान-प्रमाणयुक्त तथा सुनिश्चित अंगोपांग वाला होने के कारण ही इतना आकर्षक बनता होगा। उपलब्ध प्राचीन आकर्षक चित्रों में ये सभी विशेषताएँ प्राप्त होती हैं।
धार्मिक पटचित्र-पटचित्रों का मुख्य विषय धार्मिक रहा है। विशेषकर लम्बी-लम्बी पटों का निर्माण धार्मिक विषयवस्तु के कारण ही हुआ। क्योंकि उनमें अनेक विषयों का चित्रण करना पड़ता था। धार्मिक चित्रों में धार्मिक महापुरुषों, साधु-साध्वियों, भक्तजनों एवं पारलौकिक जीवन के चित्र अधिक अंकित किये गये हैं। कुवलयमाला में वर्णित 'भवचक्र' नामक पटचित्र भी धार्मिक चित्र ही है, किन्तु उद्द्योतनसूरि ने इसके लिए विषयवस्तु नयी चुनो है। गुप्तयुग में बुद्धघोष के उल्लेख के अनुसार ऐसे चरणचित्र बनाये जाते थे, जिनमें पाप-पुण्य के कर्मों का फल दिखाया जाता था।' महाकवि बाण ने यमपट्टों का उल्लेख किया है, जिनमें मृत्यु के बाद प्राप्त होने वाले सुख-दुखों को चित्रों द्वारा दिखाया जाता था। उद्द्योतनसूरि ने न केवल स्वर्ग एवं नरक लोक के दृश्यों का पटचित्र में वर्णन किया है, अपितु मनुष्य लोक के जीवन का यथार्थ दृश्य भी चित्र में अंकित किया है। इस तरह के दृश्यों का चित्र न तो किसी ग्रन्थ में उल्लिखित है और न ही वर्तमान में उपलब्ध पटचित्रों में प्राप्त है । अतः उद्योतन ने पटचित्रकला के इतिहास में एक नया मौलिक विषय प्रस्तुत किया है, जिसका आंशिक रूप राजस्थान की मध्ययुगीन रामदला की पड़ तथा बंगाल के पटचित्रों में देखा जा सकता है।
धार्मिक पटचित्रों की एक और विशेषता का उल्लेख उद्द्योतनसूरि ने किया है । कुवलयमालाकहा में भवचक्र नामक पटचित्र छड़ी के अग्रभाग से दर्शक
१. उपाध्याय, भगवतशरण-गुप्तकाल का साँस्कृतिक इतिहास, पृ० १९७. २. अ०-ह० अ०, पृ० ३१८