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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
९. हल के फाल से फटती हुई धरती (१८६.६)। १०. जमीन खोदते हुए मजदूर (लिहिलो परकम्मकरो) १०,११ । ११. फसल काटते हुए किसान (१८६.१२)। १२. खलिहान में बैलों द्वारा फसल से अनाज निकालते हुए किसान,(वही)। १३. खाट पर लेटे हुए ज्वर से पीड़ित व्यक्ति । उसके परिचर्या करते हुए
कुटुम्ब के लोग (१८६.१४,१७) । १४. पति के मर जाने पर रोती हुई पत्नी (१८६.२०), दास (२१),
मित्रगण (२३)। १५. कफन उढ़ाकर शव को कंधे पर ले जाते हुए व्यक्ति (२४) । १६. तृण, काठ और अग्नि ले जाते हुए अकृतज्ञ बंधुगण (२५) ! १७. चिता बनाते हुए तथा अग्नि देते हुए बन्धुगण (२७)। १८. जलती हुई चिता के पास रोती हुई पत्नी (३०), पिता (३१)
माता (३२)। १९. अपने सिर पर लकड़ी भमाते हुए तथा तालाव में जाकर मृतात्मा
को पानी देते हुए रिस्तेदार (१८७.३, ४)। २०. ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते हुए कुटुम्बी (५)।
'कुमार, यह एक दूसरा चित्र मैंने लिखा है। इसे देखने की कृपा करो कि यह शोभन एवं विद्ध है अथवा नहीं ?'१ निम्नोक्त चित्रों का अंकन उस चित्रपट में था :१. कोई युवक किसी युवती के साथ कुछ बात कर रहा है एवं युवती
लज्जावश पाँव के अगूठे से जमीन खोद रही है तथा मुस्कुरा रही
है (१८७.७, ८)। २. स्पर्शसुख की इच्छा से प्रियतमा का गाढालिंगन करता हुआ
युवक (६)। ३. युवक-युवतियों के मैथुन की अनेक मुद्राएँ (१२) । ४. संगीत एवं धार्मिक क्रियाओं द्वारा जन्मोत्सव मनाती हुई महिलाएँ
(१८)। ५. जन्मोत्सव पर नाचते हुए लोग (२०)। ६. गाते हुए, दाँत दिखाकर हँसते हुए, आँसू बहाकर रोते हुए, किसी
कार्य के लिए भागते हुए तथा विश्राम करते हुए व्यक्तियों के चित्र
(२१-२५) १. पेच्छसु कुणसु पसायं विद्धं किं सोहणं होइ, १८७.६.