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वादित्र
२८५ तूर का शब्द अत्यन्त गंभीर होता था-तूर-रव-गहिर-सइं (१७१.२२) तथा यह फूंक कर बजाया जाता था--पवाइयाइं तूराइं (१७१.७) । इससे ज्ञात होता है कि तूर एक प्रकार का सुषिर वाद्य था । आजकल इसे तुरही तथा रमतूरा कहा जाता है। इसके अनेक रूप उपलब्ध होते हैं । आदिपुराण (१२.२०६) एवं यशस्तिलकचम्पू (पृ० १८४ हिन्दी) में इसे तूर्य कहा गया है। उक्त विवरण से ज्ञात होता है कि आठवीं सदी में तूर एक मंगल वाद्य के रूप में प्रचलित था।
किन्तु डा० लालमणि मिश्र का कथन है कि तूर सम्भवतः कोई वाद्य विशेष न होकर वाद्ययन्त्रों के समूह के लिए प्रयुक्त होनेवाला एक शब्द था । बाल्मीकि, व्यास, कालिदास आदि ने बह वाद्य-सूचक के रूप में ही तूर्य शब्द का प्रयोग किया है। पालि-साहित्य में 'तुरिय' वन्दवादक का द्योतक माना गया है। अतः संस्कृत 'तूर्य' पालि 'तुरिय' एवं प्राकृत 'तूर' अनेक वाद्यों की सामूहिक ध्वनि को व्यक्त करता है।' इससे ज्ञात होता है कि सम्भवतः प्राचीन समय में तूर वाद्य-समूह का वाचक रहा हो, किन्तु लगभग ७-८वीं सदी तक यह वाद्यविशेष के रूप में प्रयुक्त होने लगा था।
आतोद्य एवं तूर के अतिरिक्त शेष वाद्यों को उनके स्वरूप के अनुसार चार भागों में विभाजित किया जा सकता है:
तत वाद्य
जो वाद्य तन्तु, तार या ताँत लगाकर बनाये जाते हैं वे तत कहलाते हैं। कुवलयमाला में प्रयुक्त तत वाद्यों का विशेष परिचय इस प्रकार है:
वीणा-वीणा अत्यन्त प्राचीन वाद्य है। इसकी प्राचीनता एवं वीणावादन की विधि की विस्तृत विवेचना डा० लालमणि मिश्र ने अपने शोध-प्रबन्ध में की है। प्राचीन भारत में अनेक प्रकार की वीणाओं का प्रचलन था। किन्तु प्रत्येक युग में एक या दो वीणायें ही मुख्य होती थीं। आगे चलकर उनके स्वरूप में थोड़ा-बहुत परिवर्तन होता रहता था। आठवीं सदी में किन्नरी, एकतन्त्री, महती, नकुलि, त्रितन्त्री एवं सप्ततन्त्री वोणायें प्रचलित थीं। उद्द्योतनसूरि ने कुवलयमाला में वंसवीणा, त्रिस्वर, नारद-तुम्बरू वीणा, तन्त्री का उल्लेख किया है।
वंसवीणा-कुवलयमाला में वंस-वीणा शब्द का एक साथ प्रयोग हुआ है। प्राचीन ग्रन्थों में वंस-वीणा नाम की किसी वीणा का उल्लेख नहीं मिलता। अतः यह शब्द दो वाद्यों का द्योतक है-वंशी और वीणा का। एक साथ इनके उल्लेख होने का कारण यह है कि प्राचीन समय में सामगान की संगति में वेणु
१. मि०-भा० वा० वि०, पृ० ४० २. संख-भेरी-तूर-काहल-मुइंग-वंस-वीणा-सहस्स-जय-जयासह-णिब्भरं।-१८१.३१