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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
व्यक्ति गन्धर्व, काव्य एवं नाटयकला में पारंगत होता है।' ७२ कलाओं में गन्धर्व कला भी सम्मिलित थी (२२.१)। अनेक वाद्यों के प्रसंग में भी गन्धर्व का उल्लेख हुआ है (४३.६) । इससे ज्ञात होता है कि संगीतकला के लिए गन्धर्व शब्द सामान्य रूप से प्रयुक्त होता था। सम्भवत: गन्धर्व नाम का कोई वाद्य भी था (४३.६)।
गीतों का कई प्रसंगों में उल्लेख हुआ है। कुवलयचन्द्र को देखकर नगर की वनिताएँ मधुर गीत गाने लगीं-अण्णा गायइ महुरं (२६.१७) । स्वर्ग लोक में संगीत का मधुर स्वर सुनायी पड़ता है, जबकि मनुष्य लोक में आकर कठोर
और निष्ठुर स्वर सुनना पड़ता है-संपइ खर-णिठ्ठर-सरेहिं (४३.६) । नाटक प्रदर्शन के साथ-साथ ग्रामनटी एक गीत भी गाती है (४७.५) । नाटक के प्रारम्भ में ही मृदंग के साथ गीत गाया जाता था (४६.१२)। मदन-महोत्सव के समय युवक उद्यान में झूला झूलते हुए अपनी-अपनी प्रियतमाओं के गुणगान गाते हैं। कोई गोरी की प्रशंसा गाता है, कोई श्यामांगी की। मानभट भो एक द्विपदी गाता है। रात्रि के पश्चिम पहर में कोई गुर्जर पथिक एक धवलद्विपथक गाते हए मंदिर के पास से गुजरता है, जिसमें वह सफेद बैल के गुणों की बड़ाई करता है। विन्ध्या अटवी में किन्नरमिथुन का मधुर गीत गूंज रहा था (२८.९)। स्वर्ग में पद्मप्रभ लय-ताल से शुद्ध गीत को सुनता है-लय-ताल-सुद्ध-गेयं (९३.२५) तथा घंटा का महाशब्द होने से गाने वालों का गीत-रव भंग हो जाता है (६६.१३)। विवाह के अवसर पर जैसे ही वर-कन्या के परस्पर हाथ मिले कि गीत गाना प्रारम्भ हो गया (१७१.७) तथा मनोहर मंगल गाये जाने लगे। अन्य अवसरों पर भी मंगल गाये जाने के उल्लेख मिलते हैं। अन्य अवसर पर नृत्य के साथ चर्चरी तो गायी ही जाती थी (४.२६) । विवाह के अवसर पर भी चर्चरी के गाते ही लोगों की भीड़ लग जाती थी-चच्चरि-सद्द-मिलत-जणोहं (१७१.१९)।
इस प्रकार ज्ञात होता है तत्कालीन जीवन में संगीतका विशेष महत्व था एवं प्रायः उल्लास के सभी अवसरों पर गीत गाये जाते थे। गुर्जर पथिक के गीत के उल्लेख से प्रतीत है कि सम्भवतः यह किसानों का पहट का गीत था, जो वर्तमान में भी मध्यप्रदेश में प्रचलित है। रात्रि के अन्तिम पहर में बलों को खेत की तरफ ले जाते हुए किसान गीत गाते हुए गाँव से निकलते हैं। इनके गीत प्रायः कृषि के कार्यों से सम्बन्धित होते हैं ।
१. गंधव्वे कव्व-ण? वसण-परिगओ, १९.२८ २. णियय-पियाणं चेय पुरओ गाइउं पयत्ता हिंदोलयारूढा ।....गाइउ पयत्तो इमं
च दुवइ-खंडलयं, ५२.९, १२. ३, राईए पच्छिम-जामे केण वि गुज्जर-पहियएण इमं धवल-दुवयं गीयं, (५९.३) । ४. गिज्जत-सुमंगल-मणहरए, १७१.१८ ५. वही-६७.६, १३२.३३, १३५.३१, १८८.८, १९८.६, २४४.२।