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________________ २६८ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन मट्ठोरु (१५१.१६) पालसी, जड मरिही (१६१.१२) मर जायेगी मयजाणवतं (२२४.२९) ठठरी (ऊँट की गाड़ी) मय-सिलिंब (५८.१९) मृग का चच्चा महल्ल (२.१८) विस्तीर्ण, बकवादी महाभारम्मि (१५४.१) कोषागार महाबढरभट्ट (४८.२२) = महा-बड़े, वढर-मूर्ख-छात्र, भट्ट-ब्राह्मण मलिण-कुचेलो (१५५.१४) = मैले-कुचेले वस्त्र माईण (१२२.११) = जटाधारी स्त्री देवता मालूर-थणी (२३४.१३) = बेल का पेड़ मुद्दिऊण (१५४.१) मुद्रा लगाकर मुहलिया (१५४.२८) मुखरित वाचाल मूलिया (१६६.३०) स्त्री-वैद्य मेढी (१८६.१२) पशुबन्धन काष्ठ मेल्लि (९१.१३) परित्याग करना (निद्रा) मोडिया (१२.२) मोड़ी हुई वनलता लट्ठिप्पईव-सिहाए (१४०) = दीपक रखने की लकड़ी (दीवट) लल्लाया (४०.३०) मछली पकड़ने वाला लोणिय (१५३.४) = मक्खन, नवनीत रंडा (४०.१५) विधवा (रांड) रल्लयइं (१६९.१५) रल्लक नाम का मृग रल्लय-कंवलए (१८.२६) रल्लक के रोम से बने हुए कंबल रिक्खाओ (१०१.११) थकान रुल्ला (४०.३०) कल्ला - मद्य पीने वाला वच्चहिं (५७.३३) बेचना वणीमयाणं (६५.८) याचक, भिक्षु, भिखारी वत्तिणीए (६२.३३) मार्ग, चित्र की रेखाएँ वल्लक्ख-एल्लयहं (१५१.१९) = वलक्ख, श्वेत, एल्लयहं (?) वलामोडिय (८.२५, ९.३) = बलपूर्वक आघात, ग्रंन्थि-बन्धन वसिमं (१९५.७) = वसति वाला स्थान
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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