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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
। छात्रों ने कहा-अरे व्याघ्रस्वामी, कह, राजकुल की क्या खबर हैभण, हे 'व्याघ्रस्वामि, क वार्ता राजकुले (१५२.२) । उसने कहा-पुरुष-द्वेषिणी कुवलयमाला ने श्लोक टांग रखा है-'कुवलयमालाए पुरिस द्वेषिणीए पायो लंबित: (१५२.३) । यह सुनकर ताल ठोक कर एक छात्र खड़ा हुआ और वोला-यदि पंडिताई के कारण है तब तो कुवलयमाला मुझे परिणाइ जानी चाहिए-'यदि पांडित्येन ततो मइं परिणेतव्या कुवलयमाला (१५२.४) । दूसरे छात्र ने कहा-अरे तुम्हारा पाण्डित्य क्या है-अरे कवणु तउ पाण्डित्यु । उसने जवाव दिया-छह अंगो वाले वेद पढ़ता हूँ, तथा त्रिगुण-मन्त्र पढ़ता हूं । क्या। यह मेरा पाण्डित्य नहीं है ? षडगुं वेउ पढमि, विगुण-मन्त्र पढमि, कि न पाण्डित्यु (१५२.५) । दूसरे ने कहा-अरे, तीन गुण वाले मन्त्र-पढ़ने से उससे विवाह नहीं होगा। वल्कि जो उस श्लोक को पूरा करेगा उसे वह परिणाई जायेगो,-अरे ण मंत्रेहि तृगुहि परिणिज्जइ। जो सहिपउ पाए भिदइ सो तं परिणेइ१५२. ५।
यह सुनकर एक दूसरे छात्र ने कहा-मैंने पाद पूरा कर लिया। यह गाथा पढ़ता हूँ-अहं सहियो जो ग्वाथी पढ़मि (१५२.६)। छात्रों ने कहाअरे व्याघ्रस्वामी, तुम कैसी गाथा पढ़ते हो-कइसी रे व्याघ्रस्वामि, गाथा पढ़सि त्वं (१५२.७) । उसने कहा-यह गाथा है:
सा ते भवतु सुप्रीता अबुधस्य कुतो वलं ।
यस्य यस्य यदा भूमि सर्वत्र मधुसूदन ।।१५२.८ यह सुनकर दूसरे छात्र ने क्रोधित होकर कहा-अरे मूर्ख स्कन्धक को गाथा कहता है। हमने गाथा न पूछी थी ?--अरे अरे मूर्ख, स्कंधकोपि गाथ भणसि : अम्ह गाथ ण पुच्छह (१५२.९) । तव उसने कहा-अच्छा, भट्ट यजुस्वामी, तुम गाथा पढ़ो-त्वं पढ भट्ठो यजुस्वामि गाथ, (१५२.१०)। उसने कहा-सुनो पढ़ता हूँ-सुट्ठ पढ़मि
आइं कज्जिं मत्तगय गोदावरि ण मुयंति ।
को तहु देसहु आवतइ को व पराणइ वत्त ॥१५२.११ यह सुनकर दूसरे ने कहा-अरे हमने श्लोक नहीं पूछा, गाथा पढ़ोअरे सिलोगो अम्हण पुच्छह, ग्याथी पढहो-(१५२.१ ) उसने कहा-अच्छा सुनो, पढ़ता हूँ
तंबोल-रइय-राओ अहरो दृष्टा कामिनि-जनस्स ।
अम्हं च खुमइ मणो दारिद्र-गुरू णिवारेइ ।।१५२.१३ तव सव छात्र बोल पड़े-अहो, धन्य है भट्ट यजुस्वामी, कुशल पंडित एवं विद्वान् है, जो गाथा पढ़ता है। इसी को वह व्याही जानी चाहिये-हो