________________
२५८
कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
तेलुगु प्रदेश की सीमाएँ स्पष्ट नहीं थीं तथा दोनों प्रदेशों की लिपि भी एक थी । १
११. ताजिक - इसि किसि मिसि'- ताइए शब्द का अर्थ पर्सियन या अरब निवासियों से सम्बन्धित है । सम्भव है ये ' किशमिश के व्यापारी रहे हों प्रौर वही शब्द अधिक वोलते हों । किन्तु इसि - किसि मिसी' का असि-मसि - कसिवाणिज्ज जैसे वाक्य से भी सम्बन्ध हो सकता है, जिसका अर्थ संनिक, लेखन एवं कृषि कार्य है ।
१४. कोसल - - ' जल तल ले'- कोशल के लोग 'जल तल ले' शब्दों का प्रयोग अधिक करते थे । ये शब्द छत्तीसगढ़ी बोली में 'जेला तेला' रूप में बोले जाते हैं । छत्तीसगढ़ को पहले महाकोशल कहा जाता था ।
१५. मरहट्ठ - 'दिण्णल्ले गहिल्ले' - महाराष्ट्र के लोग 'दिण्णल्लेगहियल्ले' जैसे शब्दों को वोलते थे, जो कि मराठी भाषा में 'दिलेले' एवं ' घेतलेले ' के रूप में प्रचलित है, जिनका क्रमशः अर्थ है - ' दिया एवं लिया' । इनके साहित्यिक प्रयोग भी उपलब्ध हैं ।
१६. आन्ध्र - 'टिपुटि रंटि - इन शब्दों का सम्बन्ध तेलगु भाषा से है, उसमें इनके 'अडि पोंडि रंडि' रूप मिलते हैं, जिनका अर्थ है - वह, जाना, आना ।
ग्रन्थ में उक्त १६ गाथाओं द्वारा ही १६ देशों की भाषाओं के नमूने दिये गये हैं । किन्तु अन्त में कहा गया है कि १८ देशी भाषायों के बनियों को कुवलयचन्द्र ने देखा - 'इय प्रठारस देसी भाषाउ पुलइउण सिरिदत्तो - १५३ - -१२) । अत: डा० ए० मास्टर का सुझाव है कि दो छूटी हुई भाषाएँ ओड्र एवं द्राविडी होनी चाहिए- जैसा कि नाट्यशास्त्र में उल्लेख है । अभी उक्त प्रदेशों के शब्दों की व्याख्या पूर्ण नहीं कहीं जा सकती है । सम्भव है, आगे चलकर कुछ और प्रकाश पड़े। इस प्रसंग में प्रयुक्त देशों के नामों की भौगोलिक पहचान प्रबन्ध के द्वितीय अध्याय में एवं व्यापारियों के रूप रंग का वर्णन आर्थिक स्थिति वाले अध्याय में पहले किया जा चुका है ।
मठ के छात्रों की बातचीत (१५१-१८)
विजयपुरी
मठ के छात्र विभिन्न प्रान्तों के निवासी थे । अतः उनकी परस्पर की बातचीत में भी अनेक भाषाओं मोर बोलियों का संमिश्रण प्राप्त होता है । इस प्रसंग का भी भाषा वैज्ञानिक अध्ययन डा० ए० मास्टर ने किया
3
है। मूल सन्दर्भ इस प्रकार है :
१. उपाध्ये, कुव०, इन्ट्रो०, पृ० १४५.
२.
उ० वही.
३. बी० एस० ओ० ए० एस० भाग १३, पार्ट - ४ प ( ०१०१०) आदि ।