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परिच्छेद दो भाषाएँ तथा बोलियाँ
कुवलयमालाकहा में प्रसंगवश अनेक भाषाओं एवं देशी बोलियों का प्रयोग हुआ है। यद्यपि सम्पूर्ण ग्रन्थ प्राकृत भाषा में रचित है तो भी संस्कृत, अपभ्रश, पैशाची आदि भाषाओं का प्रयोग भी ग्रन्थ में कई बार हुआ है। कुवलयमालाकहा में प्रयुक्त भाषा-विज्ञान से सम्बन्धित सामग्री भारतीय भाषाशास्त्र के अध्ययन-अनुसन्धान के क्षेत्र में पर्याप्त महत्त्वपूर्ण है।
प्रमुख भाषाएं
. उद्योतनसूरि ने प्रमुख रूप से प्राकृत, अपभ्रश एवं पैशाची भाषाओं के सम्बन्ध में विभिन्न प्रसंगों में जो जानकारी दी है, उसे इस प्रकार एक साथ देखा । जा सकता है।
प्राकृत-ग्रन्थकार ने ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही यह सूचना दी है कि यह कथा प्राकृत भाषा में लिखी जायेगी।' यहाँ ग्रन्थकार का अभिप्राय साहित्यिक प्राकृत से है, चाहे वह महाराष्ट्री हो या शौरसेनी। सम्पूर्ण कथा इसी प्राकृत में लिखी गयी है। यद्यपि ग्रन्थ में पैशाची, मागधी, राक्षसी (चूलिका पैशाची) एवं मिश्र प्राकृत का भी परिचय दिया गया है। २ ।
... कुवलयमाला में प्राकृत भाषा के लक्षण आदि का परिचय देते हुए कहा गया है कि प्राकृत भाषा में सभी कलाओं का निरूपण करनेवाले विचार तरंगों के रूप में रहते हैं। वह लोकवृतान्त रूपी महासमुद्र से महापुरुषों के द्वारा मंथन
१. पाइय-भासा-रइया-मरहठ्ठय-देसि-वण्णय-णिबद्धा। -कुव० ४.११. २. पेसाइयं, मागहियं, रक्खसयं, मीसं च-(१७५.१५) । ३. सयल-कला-कलाव-माला-जल-कल्लोल-संकुलं (७१.३) ।