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________________ २३६ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन में ही मन लगाने वाला, मन जैसा क्षणभर में दूर-देशों तक पहुँचने वाला, युवतियों के स्वभाव की तरह भोला एवं चंचल, खलजनों को संगति सदृश अस्थिर, चोर सदृश हमेशा उद्विग्न रहने वाला, दुष्ट राजा की तरह हमेशा कान ऊँचे रखने वाला, पीपल के पत्ते सदश सिर के वाल कंपित करने वाला, महामूर्ख की तरह गर्दन हिलाने वाला, अपमानित एवं कुपित मुनिसदृश नथने फुलाने वाला, समुद्रसदृश गंभीर आवर्त से शोभित उरस्थलवाला, विपणिमार्ग सदृश माण-प्रमाण से युक्त मुखवाला, सज्जन पुरुषों की बुद्धि सदृश स्थिर एवं विशाल पीठवाला तथा वेश्या के प्रेम की तरह अनवस्थित चार पैरों वाला वह उदधिकल्लोल था (२३.१३, १८) । अश्वों की १८ जातियाँ-इस प्रकार के अश्व को देख कर राजा ने उसके लक्षण आदि पूछे । कुमार ने उसका उत्तर देते हुए वर्ण और लक्षण की दृष्टि से अश्व की निम्न १८ जातियों का नाम लिया १. माला, २. हायणा, ३. कलया, ४. खसा, ५. कक्कसा, ६. टंका, ७. टंकणा, ८. शरीरा, ९. सहजाणा, १०. हूणा, ११. सैंधव, १२. चित्तचला, १३. चंचला, १४. पारा, १५. पारावया, १६ हंसा, १७. हंसगमणा एवं . १८. वास्तव्यय। ये अश्वों की सामान्य जातियाँ हैं। इनमें वर्ण एवं लक्षणों की विशेषता के कारण वोल्लाह, कयाह एवं सेराह नाम के अश्व उत्तम कोटि के होते हैं।' ये अश्वों के अरबी नाम थे, जो अरब के व्यापारियों द्वारा भारतीय बाजार में प्रचलित किये गये थे । अरब व्यापारियों का राष्ट्रकूट राजाओं से घनिष्ठ सम्बन्ध था, जो अश्वों के व्यापार में उन्हें मदद करते थे। बाण और दण्डी से लेकर हेमचन्द्र तक अश्वों के भारतीय नामों के स्थान पर अरबी नाम प्रचलित हो चुके थे। भारतीय अश्वों एवं उनके अरबी नामों तथा अरब से अश्व-व्यापार के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने अध्ययन प्रस्तुत किया है । तुलनात्मक-अध्ययन १. एयाणं जं पुण वोल्लहा कयाहा सेराहाइणो तं वण्ण-लक्षण विसेसेण भण्णइ (२३.२४). २. अग्रवाल-'इंडियन नेम्स आफ द हार्सेस'. ३. डा० गोडे, पी० के० --- 'सम डिस्टिग्टिव नेम्स आफ हार्सेस'; नामक लेख स्टडीज इन इंडियन लिटररी हिस्टरी, भाग ३, प (० १७२१८१. अग्रवाल, वासुदेवशरण, पद्मावत, पृ० ५२१. डा० मोतीचन्द्र, ज्योग्राफिकल एण्ड एकानामिकल स्टडी इन द महाभारत । अश्वशास्त्रम् (तंजौर सरस्वतीमहल सेरीज ५६, १९५२ में प्रकाशित), पृ० ६६.७. डा० गुणे-'सम रिफरेन्सेज टू पसियन हार्सेस इन इंडियन लिटरेचर फाम ए० डी० ५०० टू १८००'-पूना ओरियण्टलिस्ट, ११, १९४६, पृ० १.७. 'सम स्पेशल हार्स नेम्स इन ए० डी० १०००.१२००',-प्रेमी अभिनन्दन-ग्रन्थ, १९४६, पृ० ८०.८७.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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