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परिच्छेद एक शिक्षा एवं साहित्य
उद्द्योतनसूरि ने प्राचीन भारतीय शिक्षा, भाषाओं और बोलियों के सम्बन्ध में कुवलयमालाकहा में जो जानकारी दी है, उसके अध्ययन से कई नवीन तथ्य प्राप्त होते हैं। ग्रन्थ की इस सामग्री का अध्ययन कई विद्वानों ने किया है।' अतः यहाँ विषय की पुरावृत्ति न करते हुए कुछ प्रमुख तथ्यों पर ही प्रकाश डाला जायेगा। शिक्षा
___ व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन के सर्वाङ्गीण विकास के लिए शिक्षा प्राप्त करना प्राचीन समय से ही आवश्यक माना गया है। प्राचीन भारतीय-शिक्षा पद्धति का उद्देश्य था चरित्र का संगठन, व्यक्तित्व का निर्माण, प्राचीन संस्कृति की रक्षा तथा सामाजिक और धार्मिक कर्तव्यों को सम्पन्न करने के लिए उदीयमान पीढ़ी का प्रशिक्षण ।२ कुवलयमालाकहा में भी शिक्षा के इसी उद्देश्य को सामने रखा गया है । वाणिज्य एवं व्यापार में दक्षता प्राप्त करना शिक्षण का एक विषय है, किन्तु जब तक उसका व्यावहारिक प्रयोग न हो, उपयोगिता साबित नहीं होती। उद्द्योतनसूरि की यह विशेषता है कि उन्होंने शिक्षा के सम्बन्ध में जो आदर्श प्रस्तुत किये हैं कथा के पात्रों द्वारा उनका पालन भी करवाया है। न्होंने जितनी भाषाओं का नाम लिया है, ग्रन्थ में कहीं न कहीं उनके साहित्यिक
१. ए मास्टर-'ग्लीनिंगस फ्राम द कुवलयमालाकहा' बुलेटिन आफ द एस० ओ०
ए० एस० भाग १३, ३,४, लंदन, १९५०. क्यूपरलिडन-'द पैशाची फ्रेगमेन्ट आफ द कुवलयमाला' इण्डो इरानियन जर्नल, फस्ट, ३ पृ० २२९.४०, द हगु १९५७.
उपाध्ये- 'द कुवलयमालाकहा एण्ड माडर्न स्कालरशिप' एण्ट्रोडक्शन, १८. २. अल्तेकर-एजुकेशन इन ऐंशियण्ट इण्डिया, पृ० ३२६.