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परिच्छेद एक
ग्रन्थकार और ग्रन्थ
उद्योतनसूरि का परिचय एवं पाण्डित्य
प्राचीन भारतीय साहित्य के लेखकों ने अपने विषय में प्रायः बहुत कम सूचनायें प्रदान की हैं । किन्तु कुवलयमालाकहा के लेखक श्री उद्योतनसूरि ग्रन्थ के अन्त में प्रशस्ति में अपनी कुल परम्परा और गुरु-परम्परा का स्पष्ट परिचय दिया है । ग्रन्थ का रचनास्थल एवं समय भी निर्दिष्ट किया है । ' इस प्रामाणिक विवरण से ग्रन्थकार एवं ग्रन्थ के विषय में असंदिग्ध सूचनाएँ मिलती हैं। साथ ही उस काल की महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक सामग्री पर विशेष प्रकाश पड़ता है ।
आचार्य उद्योतनसूरि भारतीय वाङ्मय के बहुश्रुत विद्वान् थे । उनकी एकमात्र कृति कुवलयमालाकहा उनके पाण्डित्य एवं सर्वतोमुखी प्रतिभा का पर्याप्त निकष है। उन्होंने न केवल सिद्धान्तग्रन्थों का गहन अध्ययन और मनन किया था, अपितु भारतीय साहित्य की परम्परा और विद्याओं के भी वे ज्ञाता थे । अनेक प्राचीन कवियों की अमर कृतियों का अवगाहन करने के अतिरिक्त लौकिक कलाओं और विश्वासों के भी वे जानकार थे । अतः सिद्धान्त, साहित्य और लोक-संस्कृति के सुन्दर सामञ्जस्य का प्रतिफल है उनकी कुवलयमालाकहा |
ग्रन्थान्त की प्रशस्ति में उद्योतनसूरि ने लिखा है कि महाद्वार नगर में प्रसिद्ध क्षत्रिय राजा उद्योतन निवास करता था । उसके पुत्र का नाम सम्प्रति था, किन्तु वह वटेश्वर नाम से अधिक प्रसिद्ध था । इसी वटेश्वर के पुत्र कुव० के रचनाकर उद्द्योतनसूरि थे । आगे की वंश परम्परा का लेखक ने
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सग-काले वोलीणे वरिसाण सएहिँ सत्तहिँ गएहि । ए -दिहिं
रइया
अवरह-वेलाए ॥ आदि, कुव० २८३.६