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वाणिज्य एवं व्यापार
१९५ भल्लउ' आदि शब्दों का उच्चारण कर रहे थे (४) । स्नान करने वाले, तेल एवं विलेपन लगानेवाले, वालों का सीमान्त बन्धन करनेवाले तथा सुशोभित सुन्दर शरीरवाले लाट देश के व्यापारी 'अम्हं काउं तुम्हं' बोल रहे थे (५)। थोड़े श्याम, ठिगने, क्रोधी, मानी तथा रौद्र स्वभाव वाले मालव देश के निवासी 'भाज्य भइणी तुम्हे' का उच्चारण कर रहे थे (६)। उत्कट दर्य करने वाले, प्रिया के मोह में आसक्त, रौद्र, तथा पतंगवत्ति (बलिदान हो जाने वाले) कर्णाटक देश के निवासी 'अडि पाँडि मरे' बोल रहे थे (७) । कपास के सूती वस्त्र पहिनने वाले, मांस, मदिरा एवं मैथन में रुचि रखने वाले ताप्ति (तमिल) देश के निवासी 'इसि किसि मिसि' शब्दों का उच्चारण कर रहे थे (८) । सर्व कलाओं में प्रतिष्ठित, मानी, क्रोध करने पर प्रिय लगनेवाले तथा पुष्ट देहवाले कोशल के व्यापारी 'जल-तल ले' बोल रहे थे (९)। मजबूत, ठिगने, श्यामांग, सहिष्णु, अभिमानी तथा कलहप्रिय मराठे 'दिण्णल्ले गहियल्ले' का उच्चारण कर रहे थे (१०)। महिलाओं एवं संग्राम के प्रिय, सुन्दर शरीरवाले तथा भोजन में रौद्र आन्ध्र देश के वासी 'अटि पुटि रर्टि' शब्दों का उच्चारण कर रहे थे (२१) । इस प्रकार खस एवं पारस अादि १८ देशी भाषाओं को वोलनेवाले वनियों को कुमार कुवलयचन्द्र ने देखा।'
कुवलयमाला का यह वर्णन अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। यथा :-(१) भौगोलिक दृष्टि से इन १८ देशों की पहचान की जा सकती है, (२) वहाँ के निवासियों का रहन-सहन एवं स्वभाव जाना जा सकता है, (३) प्रत्येक देश के निवासियों के कुछ नाम निश्चित हो गये थे। यथा-सिन्ध के निवासी सैन्धव एवं मालवा के मालव आदि व्याकरण की दृष्टि से इन पर प्रकाश पड़ सकता है, (४) प्रत्येक देश की लौकिक बोलियों का भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन किया जा सकता है, (५) इतने देशों की आयात-निर्यात की वस्तुओं का ज्ञान किया जा सकता है, जिनका व्यापार विजयपुरी में होता था, तथा (६) विजयपुरो से इतने देशों के जल एवं स्थल-मार्ग क्या थे इसका पता चलने पर प्राचीन भारत की पथपद्धति पर नया प्रकाश पड़ सकता है । इस विवरण से सम्बन्धित प्रस्तुत ग्रन्थ के अध्यायों में इस सामग्री को विस्तार से समीक्षा की गयी है। बाजार का कोलाहल
"अरे, मुझे दो, मुझे दो। (मुझे) इससे सुन्दर अच्छा लगता है। सुन्दर नहीं है तो जाओ। प्राओ, प्रायो, बोलो, यह तुम्हें खरीद पर ही देता हूँ। सात गये तीन बचे। इस प्रकार हिसाब करते हुए बाकी आधा बचा। वीस १. इय अट्ठारस देसी-भासाउ पुलइऊण सिरिदत्तो।
अण्णाइय पुलएई खस पारस-बव्वरादीए ।- वही कुव० १५३.१२. २. दे-देहि देहि रोयइ सुंदरमिणमो ण सुन्दरं वच्च । - वही १४. ३. ए-एहि भणसु तं चिय अहव तुहं देमि जह कीयं । -वही ४. सत्त गया तीणि थियो सेसं अद्धं पदेण-पादेण । ..-वही १५.