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( १८ ) पुरोहित, ईश्वरवादी आदि विचारक । तीर्थवन्दना--विभिन्न तीर्थस्थान-गंगाद्वार, ललित, भद्रेश्वर, वीरभद्र, सोमेश्वर, पुष्कर, गंगास्नान, प्रयाग का अक्षयबट आदि । तीर्थयात्रियों का वेष एवं तीर्थयात्रा। वैष्णवधर्म-गोविन्द, नारायण, बलदेव, बुद्ध, लक्ष्मी आदि
देवता। परिच्छेद २. भारतीय दर्शन ( ३७३-३८१)
बौद्धदर्शन-हीनयान के सिद्धान्तों का प्रचार, प्रत्येक बुद्ध, लोकायत ( चार्वाक ) दर्शन-परम्परागत सिद्धान्त, 'आकाश' तत्व के उल्लेख पर विचार, अनेकान्तवादी ( जैनदर्शन ), सांख्य (योग) दर्शन-- सांख्यकारिका का पठन-पाठन, आचार्य कपिल, त्रिदण्डी, योगी, चरक की विचारधारा, सांख्य-आलोचक। वैशेषिक दर्शन--'अभाव' पदार्थ का उल्लेख न होने से 'वैशेषिक सूत्र के प्रचार की प्रमुखता, आचार्य कणाद । न्यायदर्शन--१६ पदार्थो का संक्षेप में उल्लेख । मीमांसादर्शन-छह प्रमाणों पर व्याख्यान, कुमारिल के ग्रन्थ का पठन-पाठन । चिन्तन के क्षेत्र में स्वतन्त्रता एवं समन्वय । आचार्य अकलंक और
शंकर का उल्लेख न होने से उनका परवर्ती होना । परिच्छेद ३. धार्मिक-जगत् ( ३८२-३९५ )
अन्य धार्मिक मत-पंडर-भिक्षुक (आजीवक ), अज्ञानवादी, चित्रशिखण्डि ( सप्तर्षि ), नियतिवादी, मूढ़परम्परावादी, कुतीर्थक, परतीर्थक, परिव्राजक, गच्छ-परिग्रह एवं चारण श्रमण आदि। व्यन्तर देवता-सहयोगी-देवता, किन्नर, किंपुरुष, गन्धर्व, नाग, नागेन्द्र, महोरग, यक्ष, लोकपाल एवं उत्पाती देवता भूत, पिशाच, राक्षस, वेताल, महाडायिनी, जोगिनी, कन्यापिशाचिनी आदि। तान्त्रिक साधनाएँ और उनकी विफलता -- अंजन-जोग, विलप्रवेश, मुद्रा, मण्डल, समय, साधन, देवी, भूततन्त्र, गारुल्लविद्या, मन्त्र-विद्या आदि का उल्लेख । 'सूर्य-उपासना-अरविन्दनाथ, आदित्य एवं रवि की अर्चना, मूलस्थान - भट्टारक की प्रसिद्धि, मुल्तान की सूर्य-पूजा, रेवन्तक का स्वरूप। जैनधर्म के प्रमुख सिद्धान्त-संसार-स्वरूप, चार गतियाँ, जैनमुनियों की दिनचर्या, कर्मफल, त्रिरत्न, अणुव्रत, लेश्या, प्रतिक्रमण, सल्लेखना आदि।
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उपसंहार::
चित्रफलक कवलयमालाकहा पर शोध-कार्य सन्दर्भग्रन्थ शब्दानुक्रमणिका
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