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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
इसकी पुष्टि होती है (१६९.३० ) । उन्होंने भी इसका उपयोग शिशिरऋतु में किये जाने का उल्लेख किया है । रल्लक की यह प्रसिद्धि १०वीं शताब्दी तक बनी हुई थी । '
बल्कल - दुकूल - कुवलयचन्द्र जब ऐणिका से जंगल में मिला तो उसने उसका स्वागत किया । कुमार जब वहाँ नहाने के लिए गया तो बल्कल के वस्त्र संगोकर रखे गये थे । तथा कुमार ने नहाकर कोमल धौत-धवल बल्कल - दुकूल को पहना ।
प्राचीन भारतीय साहित्य में बल्कल परिधान के अनेक उल्लेख मिलते हैं । कुवलयमाला के इस उल्लेख से यह ज्ञात होता है कि वल्कल के दुकूल भी बनते थे । ब्राह्मणसाधु एक कौपीन पटकों और दुपट्टों के साथ वल्कल पहिनते थे । अमरावती की मूर्तियों में एक ब्राह्मण-साधु के परिधान की पहिचान वल्कलवस्त्रों से की गयी है ।
वस्त्र-वीं सदी में कपड़ों के लिए वस्त्र सामान्य नाम के रूप में प्रचलित था | उद्योतन ने कुवलयमाला में सात वार वस्त्र का उल्लेख किया है । " वस्त्र नीले, पीले, श्वेत तथा नाना प्रकार के होते थे । सम्भवतः वस्त्र शब्द सूती कपड़ों के लिए प्रयुक्त होता था ।
सह- वसन - कुवलयमाला विवाह समय श्वेत सूक्ष्मवस्त्र ( सित-सहवसण- नियंसण) धारण करती है ( १७१.३) । यहाँ सह- वसण का निश्चित स्वरूप जानने में कठिनाई है । क्योंकि सण्ह नामक वस्त्र का प्राचीन साहित्य में कोई उल्लेख नहीं मिलता । अतः सूक्ष्म वस्त्र ही माना जाना सकता है ।
सत्थर – कुव० में बैठने के लिए आसनों को सत्थर कहा गया है (१८८. १८), जो संस्कृत का स्रस्तर है । राजाश्रों के यहाँ गृह-मंदिरों में बैठने के लिए कुश के बने हुए आस्तरण थे ( १४.१८ ) तथा सामान्य लोगों के यहाँ तृण के बने हुए प्रस्तरण प्रयुक्त होते थे । तृण के आसन सोने के काम भी आते थे (४१. २५) । पलंग अथवा शैय्या पर बिछानेवाले चादरों को 'सेज्जासंथार' कहा जाता था (२२०.४,५, २७१,१, २) ।
साटक - उद्योतन ने साटक को नीचे पहनने वाला वस्त्र कहा है । यह आजकल की धोती के सदृश वस्त्र था । भारत में प्राचीन समय से ही उपरना
१. रल्लकरोमन्निष्पन्नकम्बललोकलीला विलासिनी... हेमने मरुति । - यश०, पृ० ५७५. २. संठियाणि मियाई वक्कलाई । - कुव० १२८.२.
३. परिहियाई कोमल धोय धवल - वक्कल- दुऊलाइ - वही ० १२८.४.
४. शिवराममूर्ति - अमरावती स्कल्पचर्स इन दि मद्रास गवर्नमेन्ट म्युजियम, प्लेट ७२, १, मो०- प्रा० भा० वे०, पृ० १३५ उद्धृत ।
१७२.१४, १८३.१०, २२२.१४,
५. कुव० १२४.१२, १३९.१३. १५४.२१, तथा २७१.८.