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वस्त्रों के प्रकार
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नेत्रपट कह दिया हो अथवा चीन के बाजार में भी भारत के 'नेत्रपट' नाम को किसी तत्सदृश वस्त्र के लिए अपना लिया गया होगा ।
पटांशुक - कुव में पटांशुक का चार वार उल्लेख हुआ है । राजादृढ़वर्मन् अपने पटांशुक से कुमार महेन्द्र के मुख कमल को पोंछता है ।" रानी प्रियंगुश्यामापटांशुक के बने गोल आसन के अर्धभाग पर हाथ टिकाये हुई थी । मोहदत्त नगर श्रेष्ठी की पुत्री का पटांशुक पकड़ लेता है तथा राजा दृढ़वर्मन् दीक्षा लेते समय पटांशुक युगल को त्याग देता है । इन उल्लेखों से ज्ञात होता है कि पटांशुक राजाओं तथा धनी घरानों की स्त्रियों के पहिनने का वस्त्र था । सम्भवतः यह बिना सिले हुये ही जोड़े के रूप में पहिना जाता था ।
प्राचीन भारतीय साहित्य में अंशुक के अनेक प्रकारों का उल्लेख हुआ है । किन्तु पटांशुक का उल्लेख केवल दिव्यावदान में अन्य रेशमी वस्त्रों के साथ हुआ है । सम्भवतः अंकुश एवं पटांशुक में कुछ थोड़ा अन्तर अवश्य रहा होगा । वाण शुक का कई बार उल्लेख किया है । वे इसे अत्यन्त पतला और स्वच्छ वस्त्र मानते हैं । डा० मोतीचन्द्र पटांशुक को सफेद और सादा रेशमी वस्त्र मानते हैं । जबकि अंशुक विभिन्न रंगों का भी होता था । "
९
पटी - उद्योतन ने कुवलयमाला के विवाह के अवसर पर नगर की चौकियाँ ( चौराहे ) सँजायी जाने लगीं, पट्टियाँ फाड़ी जाने लगीं, आदि का उल्लेख किया है । बिल्कुल इसी से मिलता-जुलता वर्णन बाण ने राज्यश्री के विवाह के अवसर पर किया है। मंडप सजाने के लिये अनेक तरह के पट एवं पटी फाड़े जाने लगे । १° ऐसा ज्ञात होता है कि प्राचीन भारत में मंडप सजाते समय ऊपर जो चंदोबा बँधता था उसके चारों ओर कपड़ों की झालर भी लगायी जाती थी । यह झालर सम्भवतः कपड़े की बड़ी-बड़ी पट्टियों की लगायी जाती थी। आजकल भी मंडप बनाते समय झालर के लिये छीट के थान दुहरे करके चारों ओर लटका दिये जाते हैं ।
१.
णियय- पट्टसु-अंतेण - पमज्जियं से वयण - कमलयं । - १०.१२. तओ पट्टसूय- मसूरद्धंत - णिमिय-णीसह - कोमल - करयला - १२.३.
२.
३. गहिओ य ससंभम उवरिम पट्टसुयद्ध ते कुलवालियाए । – ७४.६.
णिक्खितं पट्टं सुअ - जुवलयं, २०९.१०.
४.
५. दिव्यावदान, पृ० ३१६.
६. सूक्ष्मविमलेण प्रज्ञावितानेने वांशुकेनाच्छादितशरीरा, हर्षचरित, पृ० ९.
७.
मो० प्रा० भा० वे०, पृ० ९५.
८. रघुवंश, ९.४३; ऋतुसंहार, ६.४, २९; विक्रमोर्वशीयं, पृ० ६०; मेघदूत, पृ० ४१,
९. सोहिज्जति गयर - रच्छाओ, फालिज्जंति पडीओ, कुवं० १७०.२४, २५. १०. अनेकोपयोगपाट्यमानैः अपरमितैः पट-पटी सहस्रः । - हर्षचरित, १४३.