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________________ १४४ कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन (ताजिकिस्तान), परिसिन्धु एवं बनारस में तरह-तरह के कम्बल बनते थे। कम्बल के अति प्रचलन के कारण पाणिनि के समय पण्यकम्बल नाम से बाजार में एक नाम भी प्रचलित हो गया था। इससे ज्ञात होता है कि कम्बल भारतीय व्यापार में आयात-निर्यात की वस्तुओं में सम्मिलित रहा होगा। ___ कच्छा-कुवलयमाला के उल्लेख के अनुसार कच्छा एक प्रकार का लंगोट था, जिसे भिखारी पहिनते थे। किन्तु वर्णन के प्रसंग के अनुसार प्रतीत होता है कि गुरुओं से शिक्षा ग्रहण करनेवाले छात्र या धार्मिक शिष्य भी कच्छा पहिनते रहे होगें। व्याख्याप्रज्ञप्ति (१.२, पृ० ४९) में चरक-परिव्राजक द्वारा कच्छोटक (लंगोटी) पहिने जाने का उल्लेख है। कच्छा पुरुषों के अतिरिक्त अधोवस्त्र के नीचे स्त्रियाँ भी पहिनने लगी थीं। लाट देश में कच्छा पहिनने का रिवाज था। महाराष्ट्र में उसी को भोयड़ा कहा जाता था, जो कन्याएँ विवाह के बाद गर्भवती होने तक धारण करती थीं। कला में भी कच्छा पहिने हुए कई अवशेष प्राप्त हुए हैं। अजंता के भित्तिचित्रों में लेण नं० १७ में शिकारी लंगोट पहिने हुए अंकित हैं।" लंगोटी (कच्छा) एक नाव के आकार का होता था । वीच में चौड़ा एवं दोनों छोर पतले, जो कमर में खोंसने के काम आते थे। कच्छा का अभी भी प्रयोग होता है एवं स्वरूप भी लगभग वही है। कूर्पासक-कुव० में कर्पासक का दो बार उल्लेख है, जिससे ज्ञात होता है कि आठवीं सदी में ठंड से बचने के लिए कर्पासक पहिने जाते थे तथा पुत्री के विवाह पर कर्पासक सिलाये जाते थे। अमरकोष के अनुसार कर्पासक स्त्रियों की चोली थी।' कालिदास ने कंचुक के अर्थ में इसका उल्लेख किया है, जो स्तनों पर कसकर बैठता था एवं स्तनों के नखक्षतों को ढंकने में मदद करता था। वाण ने राजाओं को भी चितकबरे कूर्पासक पहिने हुए बतलाया हैनाना कषायकव॒रैः कूर्पासकैः, (२०६) । डा. वासुदेवशरण अग्रवाल के अनुसार कूर्पासक स्त्री और पुरुष दोनों का ही पहिनावा थोड़े भेद से था। स्त्रियों के लिए यह चोली के ढंग का था और पुरुषों के लिए फतुई या मिर्जई के ढंग का। इसमें १. म० भा०, २.४५, १९, २.४७, ३. २. अ०-पा० भा०, पृ० १३५. ३. गेण्हसु दंसण-भंडं संजम-कच्छं मइं-करकं च । गुरुकुल-घरंगणेसुं भम भिक्खं णाण-भिक्खट्ठा ॥-कुव० १९३.६. ४. ज०-० आ० स०, पृ० २११ पर उद्धत, निशीथचूर्णीपीठिका, ५२. ५. मो०-प्रा० भा० वे०, पृ० १९५ पर उद्धृत । ६. जम्मिकाले 'णियंसिज्जंति कुप्पासयई, कुव० १६९.१६. ७. सीविज्जंति कुप्पासया, वही, १७०.२५. ८. कुर्पारे अस्य ते कूर्पासाः स्त्रीनां कंचूलिकाख्यः-अमरकोष-६.११८. ९. मनोज्ञकूसिक-पीडितस्तनाः, ऋतुसंहार ५.८, कूसिकं परिदधाति नखक्षतांगी, वही० ४.१६.
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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