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________________ सामाजिक आयोजन १३५ उद्योतनसूरि ने मृतक-संस्कार के बाद ब्राह्मण-दान आदि का भी उल्लेख किया है। चंडसोम अपने भाई एवं बहिन का अग्नि-संस्कार कर ब्राह्मणों को सर्वस्व दान कर तीर्थस्थान को निकल जाता है। मृतक को तर्पण देने के बाद ब्राह्मणभोज भी कराया जाता था (१८७.५)। लेखक का कथन है कि इस संसार की ऐसी छद्मस्थता का क्या परिणाम होगा ?' सतीप्रथा-कुव० में सतीप्रथा का दो बार उल्लेख हुआ है। सन्व्यावर्णन के प्रसंग में सूर्य का अनुकरण करनेवाली संध्या की उपमा अनुमरण करनेवाली कुल-बालिका से दी गयी है। कामगजेन्द्र को यह सलाह दी गयी थी कि पति के मरने पर पत्नी का अनुमरण करना तो उचित है, किन्तु किसी महिला के लिए किसी पुरुष द्वारा अनुमरण करना शास्त्रों में fiदित माना गया है। यह शास्त्र सम्भवतः कोई स्मृतिग्रन्थ रहा होगा। बोधायनस्मृति में इसी विचारधारा के अनुकूल उल्लेख मिलता है। किन्तु कुवलयमाला के उल्लेख से ज्ञात होता है कि तत्कालीन समाज में सतीप्रथा को निन्दनीय माना जाता रहा होगा । महाकवि बाण भी चन्द्रापीड के द्वारा महाश्वेता को सान्त्वना दिलाते समय सतीप्रथा की विस्तार से निन्दा करते हैं। हो सकता है यह बौद्ध और जैन मान्यताओं का प्रभाव रहा हो। दासप्रथा-उद्योतनसूरि ने ग्रन्थ में यत्र-तत्र दासप्रथा से भी सम्बन्धित कुछ जानकारी दी है। प्राचीन भारत में दासप्रथा प्रचलित थी। यह समय भारत में इस्लाम धर्म के प्रवेश का था । बहुत से अरब व्यापारी भारत में आकर वसने लगे थे, हो सकता है इससे भी तत्कालीन दासप्रथा पर प्रभाव पड़ा हो । उद्द्योतन के अनुसार दसियाँ वस्त्र, भोजन एवं कार्य के लिए पूर्णरूप से अपने मालिक पर निर्भर रहती थीं। __ कुवलयमाला में भगवान महावीर गौतम को उपदेश देते हुए कहते हैं कि जो व्यक्ति मदोन्मत्त होकर जीवों का क्रय-विक्रय करता है वह मरकर दासत्व को प्राप्त होता है-मरिउं दासत्तं वच्चए (२३१.२८ कुव०)। अतः दास होना अत्यन्त कष्टपूर्ण जीवन का प्रतीक रहा होगा। दास शब्द का स्वयं एक विस्तृत इतिहास है। १. किं तस्स होई एयं एसो लोयस्स छउमत्थो-१८७.५. २. कुल-बालिय व्व संझा अणुमरइ समुद्द-मज्झम्मि-८२.२०. जज्जइ महिलाण इमं मयम्मि दइयम्मि मारिओ अप्पा।। महिलत्थे पुरिसाणं अप्पवहो णिदिओ सत्थे ॥-२४०.१२. ४. बोधायनस्मृति १.१३. अ०-का० सा० ऊ०, पृ० १७२. ६. ३०.३४, १८६.२१, २२७.२८, २३१.२८ आदि । ७. अण्णं च एस दासो' को मह दाहिइ वत्थं, को वा असणं ति को व कज्जाई । एयं चिय चितेंति एसा लिहिया रूवंती मे ॥-१८६.२१, २२. ८. टी. वूरो-'द संस्कृत लेंग्युएज', पृ० २५ एवं बु०-पो० सो० प०, पृ० ३५ .
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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