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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन
वे प्राचीन समय की आरट्ट क्षत्रिय जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो उस समय अनेक जनपदों में योद्धा के रूप में रहते थे।'
गोल्ल-उद्योतन ने गोल्ल जाति का उल्लेख छात्रों एवं बनियों के रूप में किया है। गोल्ल अस्थिर जाति के लोग थे, जो इधर-उधर घूमते रहते थे। वे गायें पालते थे तथा दवाईयाँ आदि बेचते थे। इनकी तुलना आभीरों से की जा सकती है ।२ उद्द्योतनसूरि ने इनको कृष्ण वर्णवाला, निष्ठुरवचन बोलने वाले, निर्लज्ज तथा कलहप्रिय कहा है (१५२.२४) । गोल्ल काश्यपगोत्र को एक शाखा का भी नाम है।"
ढक्क–ढक्क चतुरता, दानवीरता, विज्ञान, दया आदि से रहित थे (१५३.१)। ये सम्भवतः टक्क म्लेच्छ थे, जो उत्तरीभारत से व्यापार करने के लिए दक्षिण में जाया करते थे। टक्क (पंजाब) प्रदेश से जाने के कारण इन्हें टक्क अथवा ढक्क कहा जाता रहा होगा।
सौराष्ट्र-मठ के छात्रों में सोरट्ठा (१५०.२०) भी थे। सम्भवतः सौराष्ट्र के छात्रों को सोरट्ठ कहा गया है। डा० बुद्धप्रकाश के अनुसार सोरट्ठ 'आरट्ट' के विपरीत अर्थ में प्रयुक्त शब्द है। जिन जातियों का निवास- . स्थान निश्चित नहीं था वे अराष्ट्रक तथा जो किसी प्रदेश विशेष में स्थिर हो गयी थीं वे 'स्वराष्ट्रक' कही गयीं। आधुनिक गुजरात में प्राचीन समय में निवास करनेवाले वृष्णि एवं अंधकों को 'सुराष्ट्र' कहा जाता था। कौटिल्य ने प्रायुध
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Most of these settlements eschewed the order of castes and callings held sacred in orthodox Brāhmanism. In them the autocracy of kings and priests did not strike root. Hence they were termed as stateless or Arastrakas (Prakrit aratta). It is probably this word arrațța, which has become aroda in modern times. The arodās are a widespread Khatri community in Modern Panjab. They represent the ancient äratta Kşatriyas, who lived on warfare in their numerious Janpadas.
- -B. PSMP. P. 197. Gollas are an itinerant tribe. They tend cows and sell medicines etc, They are akin to Abhiras.-Kuv. Int. P. 144. Paia-Sadd-Mahapnao, (Golla). It was probably in contradistinction to the Arāştrakas or Arattas that the name 'Surāstra' came in to vogue, This name was adopted by the Vșanis and Andhakas settled in the region of Modern Gujrāt,
-B. PSMP. P. 199.
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