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परिच्छेद ४. बृहत्तर भारत ( ८५-९४ )
उत्तरकुरू, कुडुंगद्वीप, खस, चन्द्रद्वीप, चीन ( तिब्बत के समीपवर्ती पहाड़ी राज्य ), महाचीन ( आधुनिक चीन ), जम्बूद्वीप, तारद्वीप, दक्षिण समुद्र, पारस ( सुमात्रा का पारसीक द्वीप ), बबरकुल ( अफ्रिका उत्तरी-पश्चिमी तट), यवनद्वीप ( जावा ), रत्नद्वीप ( श्रीलंका) बारवई ( वरुवारी), सुवर्ण द्वीप ( सुमात्रा ) आदि ।
परिच्छेद ५. प्राचीन भारतीय भूगोल की विशिष्ट शब्दावलि ( ९५-९८ )
अग्गाहार, अन्तरद्वीप, अष्टापद, आकर, कर्वट, खेटक, ग्राम, गोट्ठगण, णिण्णयाओ, द्वीप, द्रोणमुख, नगर, पट्टण, पथ, महापथ, परंतीर, पुर, मण्डम्ब, वस्तव्यक, स्थान, विसय, सीमान्त, बिहार, आराम आदि ।
श्रध्याय तीन : : सामाजिक जीवन
परिच्छेद १. वर्ण एवं जातियाँ ( १०१-११८ )
उद्योतनसूरि की समाजगठन विषयक मान्यताएँ - जन्म की अपेक्षा कर्मगत वर्ण-व्यवस्था को प्रधानता । प्रमुख चार वर्ण - ब्राह्मण, क्षत्रिय, ठाकुर, इक्ष्वाकु, वैश्य एवं शूद्र । आर्य एवं अनार्य जातियों का विभाजन | म्लेच्छ जातियाँ - ओड्, किरात, कुडक्ख, कोंच, कोत्थ, गौड़, कंचुक, पुलिंद, भिल्ल, शबर एवं भरुरुचा । अन्त्यज जातियाँ - डोंब, पक्कणकुल, भेरिय, शौकारिक, वोक्कस, चण्डाल, मातंग, वंशुलि, जत्यधंधक आदि । कर्मकार जातियाँ - लुहार, अहीर, चारण, काय ( कायस्थ ), इभ्य, कप्पणिया एवं मगहा । प्रादेशिक जातियाँ - आरोट्ट ( अरोड़ा ), मालविय, कान्यकुब्ज, सोरट्ठ, श्रीकंठ, गुर्जर, मरहट्ठ, अन्ध आदि । विदेशी जातियाँ - शक ( सिक्ख ), यवन ( जोनेजा), हूण ( चावला, खन्ना ), खस ( नेपाली खस्सा ), तज्जिक ( अरब), सिंहल, रोम, पारसीक, अरवाक, कोंच आदि । हयमुख, गजमुख, हयकर्ण आदि टोटेमिस्टिक ट्राइब्ज । जातियों का संस्कृति के आधार पर विभाजन ।
परिच्छेद २. सामाजिक संस्थाएँ ( ११९ - १२६ )
आधारभूत संस्थाएँ - पारिवारिक जीवन — पुत्र, पुत्री, दाम्पत्यप्रेम, माता-पिता आदि प्रमुख सदस्यों की स्थिति | विवाह संस्था | धार्मिक संस्थाएँ -- देवकुल, मठ, पाठशाला, समवशरण, अग्निहोत्रशाला एवं ब्राह्मणशाला । परोपकारी संस्थाएँ - पवा, मंडप, सत्रागार, एवं आरोग्यशाला । आर्थिक समृद्धि का समुचित उपयोग ।
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