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परिच्छेद पाँच
प्राचीन भारतीय भूगोल की विशिष्ट शब्दावलि
उद्योतनसूरि ने प्रसंगवश कुछ ऐसे शब्दों का उल्लेख प्राचीन भारत में भौगोलिक स्थानों के लिए प्रयुक्त होते थे । भारतीय स्थापत्य में भी प्रयोग होता था, जिनके सम्बन्ध में डाला जायेगा । अकारादिक्रम से भौगोलिक शब्दों का परिचय इसप्रकार है :
किया है, जो
इन शब्दों का आगे प्रकाश
श्रग्गाहार (२५८.२६ ) - सरलपुर ब्राह्मणों का अग्गाहार था । इससे ज्ञात होता है कि ब्राह्मण जिस गाँव में रहते थे वह अग्गाहार कहलाता था । इस प्रकार के गाँव ब्राह्मणों को दान में मिलते थे ।
अन्तरद्वीप (१४३.२१)) - भारत से बाहर के प्रदेश, जिनमें सबर, बर्बर आदि जातियाँ रहतीं थी उन्हें अन्तरद्वीप कहते थे ।
अष्टापद (२८२.२१ ) -- जावालिपुर अष्टापद की भाँति भवनों के उतुंग शिखर वाला था । अष्टापद प्रसिद्ध हिमालय पर्वत को कहा जाता था ।
'आगर' श्राकर ( २५८.१९ ) - ' आकर ' शब्द का अर्थ खान है, किन्तु साहचर्य सम्बन्ध से आकर के निकटवर्ती ग्राम को भी आकर कहा जाता था । आदिपुराण में स्वर्ण आदि की खान के समीपवाले गाँव में आकर कहा गया है । ( १६.१७६ आदि) । जैन टीकाकारों को कहा है जिसका कर (टेक्स) नहीं लिया जाता था ।
आकर उस ग्राम
कर्बट (५५.७, २५९.१८ ) – कौटिल्य ने खर्वट को एक दुर्ग के रूप में कहा है । यह दो सौ ग्रामों की रक्षा हेतु बनाया जाता था (१७.१, ३) । शिल्पशास्त्रों में इसे प्रायः खर्वट कहा गया है । समरांगणसूत्रधार में इसे कर्वट कहा गया है, इसमें नगरतत्त्व अधिक होता था । मानसार एवं मयमतम् के अनुसार
१. समरांगणसूत्रधार, पृ० ८६.