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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन जो प्राचीनकाल में व्यापार का बड़ा केन्द्र था और जहां के शंख बहुत प्रसिद्ध थे।' सोपारक से वरुवारी तक व्यापारी वाणिज्य के लिए जाते थे।
सुवर्णद्वीप (६६-१)-एक व्यापारी पलाश-पुष्प लेकर स्वर्णद्वीप गया और वहाँ से स्वर्ण भर कर लाया।२ प्राचीन समय में दक्षिण-पूर्वी एशिया के सभी देशों के द्वीप और प्रायःद्वीप के लिए 'स्वर्णद्वीप' शब्द का प्रयोग होता था। किन्तु ७-८ वीं शदी में स्वर्णद्वीप का प्रयोग व्यापारी प्रायः सुमात्रा के लिए करने लगे थे, जहां उस समय श्रीविजय का शासन था। सुमात्रा में पलाशपुष्पों के उपयोग आदि के सम्बन्ध में डा० बुद्धप्रकाश ने पर्याप्त प्रकाश डाला है।'
सुमात्रा की स्थिति के सम्बन्ध में विद्वानों का कथन है कि मलय उपद्वीप और चीन सागर को भारत-महासमुद्र से पृथक् रख कर सुमात्रा येनंग की एक समानान्तर रेखा से आरम्भ वण्टम की समानान्तर रेखा तक विस्तृत है। यहाँ के अधिकांश निवासी मलयवंशीय हैं। ब्राह्मण-पुराण में सुमात्रा का नाम मलयद्वीप भी है। सुमात्रा स्वर्ण प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध था। कुव० के प्रसंग से भी यही ज्ञात होता है।
१. 'एन एर्थ सेन्चुरी इण्डियन डाकुमेन्ट आन इन्टरनेशनल ट्रेड'
-बु०-ट्रक०म०, दिसम्बर १९७० २. अहं सुवण्णद्दीवं गओ पलासकुसुमाइ घेत्तूणं, तत्थ सुवण्ण घेत्तूण समाणओ
-कुव०६६-१ ३. बु०-ट्रे क०म०, पृ० ४४-४५. ४. ह०-स०क०, छठाभव ।