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________________ बृहत्तर भारत साहित्य में उन्हें चीन कहकर उल्लेख किया गया है।' तथा आधुनिक चीन को जिसमें मंगोल प्रदेश भी सम्मिलित था, महाचीन कहा जाता था। तन्त्रविद्या के ग्रन्थों में महाचीन शब्द का बहुत उल्लेख हुआ है ।२ प्रसिद्ध चार जातियों में से जोग (Gog) एवं माजोग (Magog) के उच्चारण भी मध्यकाल में क्रमशः चीन और माचीन के रूप में पूर्वी एशिया में प्रसिद्ध हुए। सम्भव है, इन्हीं शब्दों के कारण चीन और महाचीन शब्द उस प्रदेश विशेष के लिए भी प्रयुक्त होते रहे हों, जहाँ इन जातियों की प्रमुखता थी। जम्बूद्वीप (६४.२७, २४१.३१)-कुव० में जम्बूद्वीप का उल्लेख जैनपरम्परा के अनुसार हुआ है। इस लोक में जम्बूद्वीप के भारतवर्ष के वैताढयपर्वत की दक्षिण-श्रेणी में उत्तरापथ नाम का पथ है-इत्यादि। उद्द्योतनसूरि ने भारतवर्ष शब्द का प्रयोग वर्तमान भारत के लिए किया है, जिसका विभाजन वैताढयपर्वत के द्वारा होता था। जम्बूद्वीप शब्द का प्रयोग क्रमशः भारतवर्ष के अतिरिक्त अन्य देशों के लिए भी प्रयुक्त होने लगा था। बौद्धसाहित्य में यद्यपि जम्बूद्वीप को प्रायः भारतवर्ष का पर्याय माना गया है। किन्तु भारतीय भूगोल-शास्त्रियों के ज्ञान की वृद्धि के साथ-साथ जम्बूद्वीप का भी विस्तार होता रहा है। भारतीय ग्रथों में" जम्बूद्वीप के अन्तर्गत जिन अन्य देशों का उल्लेख हुआ है, उसकी पहचान एशिया के विभिन्न देशों से डा० बुद्धप्रकाश ने की है। यथा उत्तरकुरु की पहचान चीनी तुरकस्तान के तरिमवसिन राज्य से, हरिवर्ष की पहचान अश्वों के लिए प्रसिद्ध सुघद (Sughd) से, इलावृतवर्ष की पहचान इली नदी के क्षेत्र से, भद्राश्ववर्ष की सीतानदी (जकार्ता) के मैदान से, केतुमाला की वक्षु नदी के प्रदेश से, किंपुरुषवर्ष की पहचान हिमालय प्रदेश से, हिरण्यमयवर्ष की बदक्षान प्रदेश से तथा रम्यवर्ष की पहचान सुदूरपूर्व में रामी या रामनीद्वीप से । अतः भारतवर्ष वर्तमान हिन्दुस्थान के लिए प्रयुक्त हुआ है। एवं जम्बूद्वीप का विस्तार बृहत्तरभारत के विभिन्न प्रदेशों में था। कुव० में जम्बूद्वीप के अतिरिक्त अन्य परम्परागत पर्वतों, द्वीपों व समुद्रों का भी उल्लेख आया है, जिनमें सुरगिरि (७.२२) कुलपर्वत (७.४-६), वक्षारमहागिरि (४३.१-४), १. Cina (Hilly states of the Tibetan borderland such as Shina) Mahacina (China). -B. AIHC. P. 287. २. Bagchi, P. C. "Studies in the Tantras" P.96-99. ३. 'Sakadvipa'-B. LAW- p. 191. ४. अस्थि इमम्मि चेय लोए, जम्बूदीपे भारहे वासे वेयड्ढे दाहिण-मज्झिम-खण्डे उत्तरावहं णाम पहं-६४.२७. ५. का० मी०, पृ० ९१-९३. ६. बु०-इ० ब०, पृ० २१७,
SR No.032282
Book TitleKuvalaymala Kaha Ka Sanskritik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Jain Shastra evam Ahimsa Shodh Samsthan
Publication Year1975
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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