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कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन कर रहे थे तथा कहीं किन्नर गीतों के मधुर शब्दों से एक स्थान पर अनेक पशु एकत्र हो रहे थे, इत्यादि।
उद्द्योतनसूरि द्वारा प्रस्तुत विन्ध्याटवी का उपर्युक्त वर्णन कादम्बरी में बाण द्वारा प्रस्तुत वर्णन से भी विस्तृत है। दोनों वर्णनों में कहीं-कहीं समानता भी है। जैसे उद्योतन ने उसे रणभूमि सदृश कहा है (२७.३०), बाण ने 'क्वचित्समरभूमिरिव शरशतनिचिताः' शब्दों का प्रयोग किया है। बाण ने जहाँ 'क्वचिदशमुखनगरीव चहुलवानरवन्दभज्यमानतुंगशालाकुला' समास का प्रयोग किया है, वहाँ उद्योतनसूरि ने 'लंकाउरि-जइसिया, पवयवन्द्र-मज्जंतमहासालपलाससंकुल व्व' कहकर अटवी की तुलना की है (२८.१) आदि ।
विन्ध्याटवी का प्राचीन साहित्य में अनेक वार उल्लेख हुआ है । महाभारत में इसे विन्ध्यवन कहा गया है।' बौद्धसाहित्य में विन्ध्याटवी या विन्ध्यारण्य का पर्याप्त उल्लेख है। विन्ध्यपर्वत की तराई में इस अटवी का अस्तित्व होना चाहिए।
कुव० में गंगाद्वार (४८.२४), गंगासंगम (५५.२१), गंगानदी (६३.२५), सुरनदी (७१.२५), नर्मदा (१२०.३२, १२४.१६), रेवा (१२१.१७, १२३.३), चन्द्रभागा (२८२.५), सीता-सीतोदा (४३.१३) तथा सिन्धु (७-६) आदि नदियों का उल्लेख हुआ है। इनमें नर्मदा एवं गंगा नदी का कथा के पात्रों द्वारा अनेक बार. भ्रमण किया गया है। कुव० में वर्णित भूगोल को समझने में नर्मदा और गंगा नदियों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारत की ये प्रसिद्ध नदियाँ हैं। अतः इनके विषय में जानकारी देने की पुनरावृत्ति नहीं की गयी है।
१. म० मा० आदिवर्ष, २०८, ७, सभापर्व १०-३१, वनपर्व १०४-६. २. महावंश, (हिन्दी), १९-६; दीपवंश, पृ० ६५५ तथा उ०-बु० भू०, पृ० १६३.