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विषयानुक्रमणिका
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अध्याय एक : : उद्योत सूरि और उनकी कुवलयमालाकहा परिच्छेद १. ग्रन्थकार और ग्रन्थ ( १-७ )
उद्योतनसूरि का परिचय एवं पाण्डित्य, कुवलयमालाकहा का समय
( ७७९ ई० ) एवं रचना-स्थल-जावालिपुर ( जालौर )। परिच्छेद २. कुवलयमालाकहा का साहित्यिक स्वरूप ( ८-२० )
कथा के भेद-प्रमेद संकीर्णकथा, चम्पूकाव्यत्व, कथास्थापत्य संयोजनपूर्णदीप्तिप्रणाली, कालमिश्रण, कथोत्प्ररोहशिल्प, सोद्देश्यता, अन्यापदेशिकता, वर्णनक्षमता, भोगायतन-शिल्प, प्ररोचनशिल्प, रोमांसयोजना, कुतूहल-योजना, वृत्ति-विवेचन, उदात्तीकरण । रस-अलंकार-शृङ्गाररसपूर्ण कथा का औचित्य, अन्य रस, उपमा, व्यक्तिरेक, परिसंख्या, श्लेष, चित्रालंकार, रूपक आदि अलंकार। छन्द-योजना-अधिकाक्षरा, अवलम्बक आदि ३६ छन्दों का प्रयोग। कथाओं में लोकतत्वों का समावेश - कुव० के साहित्यिक-मूल्यांकन की आवश्यकता। कु० की अन्य कथा-ग्रन्थों से तुलना -- कादम्बरी एवं कुवलयमालाकहा के कथानक
में साम्य, कुवलयमालाकहा की मौलिकता । परिच्छेद ३. ग्रन्थ की कथावस्तु एवं उसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
( २१-३३) कुव० का संक्षिप्त सम्पूर्ण कथानक। पुनर्जन्म एवं कर्मफल की सम्बन्ध-शृङ्खला एवं आत्मशोधन द्वारा मुक्ति की प्राप्ति जैसी विचारधाराओं का परिपाक । प्रतीकपात्रों के निर्माण की मौलिकता, कु० द्वारा रूपकात्मक परम्परा का सूत्रपात । लेखक द्वारा वस्तु-जगत् का
सूक्ष्म अंकन। परिच्छेद ४. ऐतिहासिक सन्दर्भ ( ३४-४८ )
पूर्ववर्ती आचार्यों के स्मरण की परम्परा। प्राचीन ग्रन्थकार और उनके ग्रन्थ-छप्पण्णय-विदग्ध काव्य-प्रतिमा का द्योतक कवि, पादलिप्त एवं तरंगवती, हाल-गाथा सप्तशती, गुणाढ्य-बृहत्कथा, बाल्मीकिरामायण, व्यास-महाभारत, बाण-कादम्बरी, विमलसूरि--पउमचरियं, देवगुप्तसुपुरिसचरियं, हरिवर्ष-सुलोचनाकथा, प्रभंजन-यशोधरचरित, रविषेणपदमचरित. जटिल-वरांगचरित. हरिभद्रसरि-समरमियंककथा। कविउपाधियां-अभिमान, पराक्रम, साहसांक एवं विणए। साहसांक