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________________ શ્રીસુખમની ' कहू न सीझई' - शु धावानु नथी. स्थिर मात्र ति, સાધુ શરણ, નામજપ, અને હરિનાં ચરણ છે.” પાંચમા પદમાં એ જ મિથ્યાત્વ-ગાન આગળ ચાલે છે, ને અંતે गुरु ४ छ- ' 'बिनु बूझे मिथिआ सभ भए। सफल देह नानक हरि हरि नाम लए' -प्रभु सत्य छे ये गए। २ मे पधाना તને ખપ જડનાર નથી; હરિનામ લો તે દેહ સફળ થશે. मिथिआ स्रवन पर निंदा सुनहि । मिथिआ हसत पर दरब कउ हिरहि ॥१॥ मिथिआ नेत्र पेखत पर त्रिअ रूपाद । मिथिआ रसना भोजन अनस्वाद ॥२॥ मिथिआ चरन पर बिकार कउ धावहि मिथिआ मन पर लोभु लुभावहि ॥३॥ मिथिआ तन नही पर उपकारा । मिथिआ बासु लेत बिकारा ॥४॥ बिनु बूझे मिथिआ सभ भए । सफल देह नानक हरि हरि नाम लए ॥५॥ શબ્દાથ [ स्रवन = अन. हसत = &ाथ. पर त्रिअ = ५२-श्री. रसना = 9. अनस्वाद = अन्य (परमात्मा सिवायनी) स्वाह. ] ५-५ જે કાન પારકાની નિંદા સાંભળે છે, તે મિથ્યા છે, તેવી જ રીતે પારકાનું દ્રવ્ય હરનારા હાથ પણ; (૧).
SR No.032277
Book TitleSukhmani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMaganbhai Prabhudas Desai
PublisherParivar Prakashan Sahkari Mandir
Publication Year1970
Total Pages384
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size17 MB
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