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________________ 10 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१९ उपमागत रंगों से प्रयोजन है। इसप्रकार कषायों या इच्छाओं में रंगे हुए चेतन के ये परिणाम या लेश्या छह प्रकार की होती हैं - कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म व शुक्ल । इन्हीं को विशेष स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण देता हूँ। एकबार छह मित्र मिलकर पिकनिक मनाने निकले। सुहावनासुहावना समय, मन्द-मन्द शीतल वायु, आकास पर नृत्य करने वाली बादलों की छोटी-छोटी टोलियाँ, मानों प्रकृति के यौवन का प्रदर्शन कर रही थीं। छहों मित्रों के हृदय भी अरमानों से भरपूर थे। सब ही अपने-अपने विचारों में निमग्न चले जाते थे। नदी के मधुर गान ने उनके हृदय में और भी उमंग भर दी। वे भूल गए सब कुछ और खो गए इस सुन्दरता में। आ हा हा हा ! कितना सुन्दर लगता है, और देखो मित्र इस ओर वाह-वाह काम बन गया, अब खूब आनन्द रहेगा, जी भरकर आम खायेंगे। सामने ही मद झरते पीले-पीले आमों से लदा एक वृक्ष खड़ा था। एक बार ललचाई-सी दृष्टि से देखा और स्वतः ही उनके पाँव उस ओर चलने लगे। छहों के हृदय में भिन्न-भिन्न विचार थे। वृक्ष के पास पहुँचते ही अपने-अपने विचारों के अनुसार सब ही शीघ्रता से काम में जुट गए। एक व्यक्ति कहीं से एक कुल्हाड़ी उठा लाया, जिसे लेकर वह वृक्ष पर चढ़ गया और आमों से लदफद एक टहनी को काटने लगा। यह देखकर दूसरा मित्र उसकी मूर्खता पर हँसने लगा। बोला- “अरे मूर्ख ! क्यों परिश्रम व्यर्थ खोता है ? जितनी देर में इस टहनी को ऊपर जाकर काटेगा उतनी देर में तो नीचे वाला वह टहना ही सरलता से कट जाएगा। टहनी में तो दस पाँच ही आम लगे हैं, छहों का पेट न भरेगा। इस टहने में सैकड़ों लगे हैं, एकबार नीचे गिरा लो, फिर जी भरकर खाओ और साथ में घर भी बाँधकर ले जाओ।"
SR No.032268
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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