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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१८/३५ कुछ क्षण पहिले महान् दुर्घटना घट गई है, उनकी प्रशान्त मुख मुद्रा से ऐसा आभास परिलक्षित नहीं होता। फतेहलाल को नींद नहीं आती। वह पिता को बार-बार दबे पांव देखने आते हैं। दीवान जी की निर्विकल्प निद्रा देखकर उन्हें आश्चर्य होता है।)
फतेहलाल - (स्वगत) चलो अच्छा हुआ, पिताजी की झपकी लग गई। कप्तान स्मिथ की मृत्यु सुनकर करुणार्द्र हो उनकी आँखों से सावन भादों सी झड़ी लग गई थी। पिताजी को तीव्र मानसिक आघात पहुंचा है। ऐसी ही शान्ति से रात कट जाये तो अच्छा है।
फतेहलाल - (दूसरी बार आते हैं, स्वगत) धन्य है पिताजी को। मैं तो समझा था कि आज चिंता के कारण वे सो न सकेंगे। पर मेरा कोरा भ्रम ही निकला। सचमुच मैं उनकी गम्भीरता का अनुमान नहीं लगा पाता। वे हर परिस्थिति को शान्ति, समता तथा संतोष के साथ अपना लेते हैं।
(परदा गिरता है) दृश्य द्वितीय समय : तीसरे दिन दोपहर।
(पॉलिटिकल एजेंट का अपने दो साथियों के साथ आना। राजा जगतसिंह मंत्रणागृह में अपने दीवान द्वय श्री झूथारामजी व श्री अमरचन्दजी के साथ बैठे हैं। बीच कमरे में एक बड़ी सी मेज है, उसके चारों ओर छह आलीशान कुर्सियाँ हैं। उस पर क्रमश: राजा जगतसिंह के दोनों ओर दोनों दीवान और एजेंट के दायें-बायें दोनों साथी बैठे हैं। बात कप्तान स्मिथ की हत्या पर चल रही है।)
जगतसिंह - (सहानुभूति से) कप्तान स्मिथ की हत्या पर हमें अत्यन्त खेद है। वे हमेशा यहाँ आया करते थे। हमारे उनके बड़े अच्छे संबंध थे। समझ में नहीं आता कि अचानक किसने उनकी हत्या कर दी। जहाँ कम्पनी सरकार ने अपना एक अच्छा आफिसर खोया है, वहाँ हमने अपना एक घनिष्ट